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________________ ॐ श्रीसर्वज्ञाय नमः । अध । श्रीपंडितदेव चंद्रजीकृत - आगमसार । भव्यजीवने प्रतिबोधवा निमित्ते मोक्षमार्गांनी वचनिका कहे छे. तिहां प्रथम जीव अनादिकालनो मिथ्यात्वीहतो ते काललब्धि पामीने त्रणकरण करे छे. तेनानाम - पहेलुं यथाप्रवृत्तिकरण, बीजुं अपूर्वकरण, अने त्रीजुं अनिवृत्तिकरण. तेमा पहेलुं यथाप्रवृत्तिकरण कहे छे. १ ज्ञानावरणी, २ दर्शनावरणी, ३ वेदनी, ४ अंतराय, एचारकर्मनी त्रीस कोडाकोडीसागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी उगयात्रीस कोडाकोडी खपावे अने एककोडाकोडी वाकी राखे, तथा १ नामकर्म, २ गोत्रकर्म, ए वेकर्मनी बीसकोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी उगणीस खपावे अने एककोड़ाकोडी राखे, अने मोहनीयकर्मनी सिनेर कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी अगणोत्तर खपावे, बाकी एककोडाकोडी राखे । एबीते एक आयुकर्म वर्जने वाकी सातेकर्मनी एकपल्योपमना असंख्यातमा भागे न्यून एककोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति राखे, एवं जे वैराग्यरूप उदासी परिणाम ते यथाप्रवृत्तिकरण कहिये. ए पहेलुं करण सर्वसंज्ञी पंचेंद्रिीजीव अनन्तीवार करे छे.
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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