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-२. ११५]
परिकर्मव्यवहारः गुणव्युत्कलितस्योदाहरणम्चतुरादिद्विगुणात्मकोत्तरयुतो गच्छश्चतुर्णां कृतिर् दश वाञ्छापदमङ्कसिन्धुरगिरिद्रव्येन्द्रियाम्भोधयः । कथय व्युत्कलितं फलं सकलसद्भजाग्रिमं व्याप्तवान् करणस्कन्धवनान्तरं गणितविन्मत्तेभविक्रीडितम् ॥११५।।
इति परिकर्मविधावष्टमं व्युत्कलितं समाप्तम् ।। इति सारसंग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतौ परिकर्मनामा प्रथमो व्यवहारः समाप्तः ।।
१. प्रा.।
गुणोत्तर श्रेढि सम्बन्धी व्युत्कलित पर प्रश्न क्रमबद्ध गुच्छेवाले वृक्षों के फलों की संकलन क्रिया में ४ प्रथमपद है, २ प्रचय है, पदों की संख्या १६ है जब कि इष्ट भाग में पदों की संख्या क्रमशः १०, ९,८, ७, ६, ५ और ४ है । हे जंगली हस्तियों द्वारा क्रीड़ित वन के अंतस्थल रूपी व्यावहारिक गणित की क्रियाओं के वेधक ! बतलाओ कि कथित विभिन्न उत्तम वृक्षों के शेष फलों की कुल संख्या क्या है ? ॥११५॥
इस प्रकार, परिकर्म व्यवहार में न्युत्कलित नामक परिच्छेद समाप्त हुआ।
इस प्रकार, महावीराचार्य की कृति सारसंग्रह नामक गणित शास्त्र में परिकर्म नामक प्रथम व्यवहार समाप्त हुआ।
(११५) इस प्रश्न में भिन्न-भिन्न ७ फलों के वृक्ष हैं जिनमें से प्रत्येक में फलों के १६ गुच्छे हैं । प्रत्येक वृक्ष में सबसे छोटा गुच्छा ४ फलों वाला है; बड़े-बड़े गुच्छों में गुणोत्तर श्रेढि में बढ़ते हुए फलों की संख्याएँ हैं, जिसकी साधारण निष्पत्ति २ है । ७ वृक्षों में से हटाये हुए गुच्छों की संख्या नीचे से क्रमशः १०, ९,८,७,६, ५ और ४ है। यहाँ विभिन्न उत्तम वृक्षों पर शेष फलों की कुल संख्या निकालना है। 'मत्तेभवि क्रीडितं' जो इस सूत्र में आया है, उसी सूत्र का छन्द ( metre) है जिसमें कि वह संरचित किया गया है। इसका अर्थ वन्यहस्तियों की क्रीड़ा भी होता है ।