________________
३. कलासवर्णव्यवहारः 'त्रिलोकराजेन्द्रकिरीटकोटिप्रभाभिरालीढपदारविन्दम् । निर्मूलमुन्मूलितकर्मवृक्षं जिनेन्द्रचन्द्रं प्रणमामि भक्त्या ॥१॥ - इतः परं कलासवणं द्वितीयव्यवहारमुदाहरिष्यामः ।
भिन्नप्रत्युत्पन्नः तत्र भिन्नप्रत्युत्पन्ने करणसूत्रं यथागुणयेदंशानशैर्हारान् हारैर्घटेत यदि तेषाम् । वज्रापवर्तनविधिविधाय तं भिन्नगुणकारे ॥२॥
अत्रोद्देशकः शुण्ठ्याः पलेन लभते चतुर्नवांशं पणस्य यः पुरुषः । किमसौ ब्रूहि सखे त्वं त्रिगुणेन पलाष्टभागेन ।। ३ ।। मरिचस्य पलस्याघः पणस्य सप्ताष्टमांशको यत्र । तत्र भवेतिक मूल्यं पलषट्पञ्चांशकस्य वद ॥४॥ १ यह श्लोक P में छूट गया है । २ M मौ. ।
३. कलासवर्ण व्यवहार
( भिन्न ) जिन्होंने कर्मरूपी वृक्ष को पूर्णतः निर्मूल कर दिया है और जिनके चरण कमल तीनों लोकों के राजेन्द्रों के झुके हुए मस्तक पर लगे हुए मुकुटों द्वारा उत्पन्न प्रभामंडल द्वारा वेष्टित हैं, ऐसे जिनेन्द्र चन्द्रनाथ भगवान् को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ ॥१॥ इसके पश्चात् हम कलासवर्ण ( भिन्न ) नामक द्वितीय व्यवहार को प्रकट करेंगे।
भिन्न प्रत्युत्पन्न ( भिन्नों का गुणन ) भिन्नों के गुणन के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम है
भिन्नों के गुणन में अंशों को अंशों से गुणित किया जाता है और हरों को हरों से गुणित किया जाता है जब कि उनके सम्बन्ध में ( सम्भव ) तिर्यक् प्रहासन (वज्र अपवर्तन) की क्रिया की जा चुकी हो ॥२॥
उदाहरणार्थ प्रश्न । हे मित्र, मुझे बतलाओ यदि अदरख ( ginger ) का एक पल पण में मिलता हो तो किसी व्यक्ति को है पल के लिये क्या मिलेगा? ॥३॥ पण में १ पल मिर्च मिलती हो तो बतलाओ कि पल मिर्च की क्या कीमत होगी? ॥४॥ एक व्यक्ति को लम्बी मिर्च एक पण में पल मिलती
१ कलासवर्ण का शाब्दिक अर्थ भाग होता है, क्योंकि कला का अर्थ सोलहवाँ भाग होता है। इसलिये, कलासवर्ण का उपयोग भिन्न को साधारण रूप से दर्शाने के लिये किया गया है।
(२) जब ३४३ प्रह्लासित किये जाते हैं तो तिर्यक् प्रह्रासन द्वारा ३४ प्राप्त होता है ।