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________________ ३.] गणितसारसंग्रहः [२.११गुणव्युत्कलित शेषगच्छस्याद्यानयनसूत्रम्गुणगुणितेऽपि चयादी तथैव भेदोऽयमत्रशेषपदे । इष्टपदमितिगुणाहतिगुणितप्रभवो भवेद्वक्त्रम् ॥११०॥ अत्रोद्देशकः द्विमुखनिचयो गच्छश्चतुर्दश स्वेप्सितं पदं सप्त । अष्टनवषट्कपञ्च च किं व्युत्कलितं समाकलय ॥१११।। षडादिरष्टौ प्रचयोऽत्र षट्कृतिः पदं दश द्वादश षोडशेप्सितम् । मुखादिरन्यस्य तु पञ्चपञ्चकं शतद्वयं ब्रूहि शतं व्ययः कियान् ।।११२।। षड्घनमानो गच्छः प्रचयोऽष्टौ द्विगुणसप्तकं वक्त्रम्। सप्तत्रिंशत्स्वेष्टं पदं समाचक्ष्व फलमुभयम् ।।११३।। अष्टकृतिरादिरुत्तरमूनं चत्वारि षोडशात्र पदम् । इष्टानि तत्त्वकेशवरुद्रार्कपदानि किं शेषम् ।।११४॥ गुणोत्तर श्रेढि की शेष श्रेढि के (शेष) पदों की संख्या सम्बन्धी प्रथमपद निकालने का नियम गुणोत्तर श्रेढि के विषय में भी दी गई श्रेढि में तथा इष्ट भाग में साधारण निष्पत्ति तथा प्रथम पद समान होते हैं। परन्तु, शेष श्रेढि के पदों का प्रथमपद भिन्न होता है। दी हुई श्रेढि का प्रथमपद ऐसे गुणनफल द्वारा गुणित होकर, जो साधारण निष्पत्ति के स्वतः उतनी बार गुणित होने से उत्पन्न होता है जितनी बार कि चुने हुए पदों की संख्या होती है, शेष श्रेढि के प्रथमपद को उत्पन्न करता है ॥११॥ उदाहरणार्थ प्रश्न समान्तर श्रेढि की शेष श्रेढि के योग की गणना करो जब कि प्रथम पद २ हो, प्रचय ३ हो और पदों की संख्या १४ हो तथा चुनी हई पदों की संख्या क्रमशः ७, ८, ९, ६ और ५ हो ॥१११॥ समान्तर श्रेढि के सम्बन्ध में यहाँ प्रथमपद ६ है, प्रचय ८ है, पदों की संख्या ३६ है और चुनी हुई पदों की संख्या क्रमशः १०, १२ और १६ है। इसी तरह की दूसरी श्रेढि के प्रथमपद और प्रचय आदि क्रमशः ५, ५, २०० और १०० है। बतलाओ कि संवादी शेष श्रेढियों के योग क्या-क्या हैं ? ॥११२॥ समान्तर श्रेढि के पदों की संख्या २१६ है; प्रचय ८ है; प्रथमपद १४ है; इष्ट भाग के पदों की संख्या ३७ है। शेष श्रेढि और इष्ट श्रेढि (चुने हुए भाग) के योग क्या-क्या होंगे? ॥११३॥ समान्तर श्रेढि का प्रथमपद ६४ है, प्रचय-४ (ऋण चार ) है तथा पदों की संख्या १६ है। बतलाओ कि शेष श्रेढि के योग क्या-क्या होंगे जब कि इष्ट भाग के पदों की संख्या क्रमशः ७, ९, ११ और १२ हो ॥११॥ (११०) शेष गुणोत्तर श्रेढि का प्रथमपद अरद है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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