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-२. १०९] परिकर्मव्यवहारः
[३३ प्रकारान्तरेण व्युत्कलितधनस्वेष्टधनानयनसूत्रम्गच्छसहितेष्टमिष्टं चैकोनं चयहतं द्विहादियुतम् । शेषेष्टपदार्धगुणं व्युत्कलितं स्वेष्टवित्तमपि ॥१०७।।
चयगुणभवव्युत्कलितधनानयने व्युत्कलितधनस्य शेषेष्टगच्छानयने च सूत्रम् - इष्टधनोनं गणितं व्यवकलितं चयभवं गुणोत्थं च । सर्वेष्टगच्छशेषे शेषपदं जायते तस्य ॥१०८।।
शेषगच्छस्याद्यानयनसूत्रम्प्रचयगुणितेष्टगच्छः सादिः प्रभवः पदस्य शेषस्य । प्राक्तन एव चयः स्याद्गच्छस्येष्टस्य तावेव ।।१०९।।
१M गणितं ।
दूसरी रीति द्वारा शेष श्रेढि ( व्युत्कलित ) तथा दी गई श्रेढि के चुने हुए इष्ट भाग के योगफलों को प्राप्त करने का नियम
श्रेढि के कुल पदों की संख्या को चुने हुए पदों की संख्या में मिला लो और अपनी चुनी हुई पदों की संख्या अलग से लो; इन राशियों में से प्रत्येक को एक द्वारा हासित करो और तब प्रचय द्वारा गुणित करो । इन परिणामी गुणनफलों में प्रथमपद की दुगुनी राशि जोड़ो। प्राप्त परिणामी राशियों को जब क्रमशः शेष पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा और चुनी हुई पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा गुणित करते हैं तब शेष श्रेडि का योग और श्रेढि के चुने हुए भाग का योग प्राप्त होता है ॥१०७॥
समान्तर और गुणोत्तर श्रेढि के शेष श्रेढि की योग तथा उसके शेष पदों की संख्या निकालने का नियम-..
दी हुई श्रेढि का योग, श्रेढि के चुने हुए भाग द्वारा हासित होकर समान्तर तथा गुणोत्तर श्रेढि के शेष भाग के योग को उत्पन्न करता है। श्रेढि के कुल पदों की संख्या और चुनी हुई श्रेढि के पदों की संख्या का अन्तर शेष श्रेढि के पदों की संख्या होता है ॥१०॥
शेष श्रेदि के पदों सम्बन्धी प्रथमपद निकालने का नियम
चुनी हुई पदों की संख्या को प्रचय द्वारा गुणित करने और श्रेढि के प्रथमपद में मिलाने पर शेष श्रेढि के ( शेष ) पदों का प्रथमपद उत्पन्न होता है। उपर्युक्त प्रचय, शेष पदों का भी प्रचय होता है । चुने हुए भाग के पदों की संख्या सम्बन्धी प्रथमपद और प्रचय, दी हुई श्रेढि के प्रथमपद और प्रचय के तुल्य होते हैं ॥१०९॥
(१०७) फिर से, व्युत्कलित = यव = { ( न + द - १ ) ब+ २ अ } न-द और इष्ट का योग = यह = { ( द - १) ब+ २ अ}
(१०९) शेष श्रेदि का प्रथमपद =दxब+ अ है यह श्रेढि स्पष्टतः समान्तर श्रेढि है। ग० सा० सं०-५