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________________ -२. ९४ ] गुणसंकलिते अन्यदपि सूत्रम्समदलविषमखरूपो गुणगुणितो वर्गताडितो गच्छः । रूपोनः प्रभवनो व्येकोत्तरभाजितः सारम् ||१४|| परिकर्मव्यवहारः गुणोत्तर लेडि का योग निकालने का अन्य नियम एक अलग स्तम्भ में श्रेदि के पदों की संख्या को शून्य और एक द्वारा क्रमशः दर्शाया जाता है। जब संख्या का मान युग्म ( even ) हो तो उसे आधा किया जाता है और मान अयुग्म ( odd ) हो तो उसमें से एक घटा कर प्राप्त फल को आधा किया जाता है—यह तब तक किया जाता है जब तक कि शून्य प्राप्त नहीं होता तब यह निरूपित श्रेदि जो शून्य और एक द्वारा बनी हुई होती है, कम से अंतिम 'एक' से प्रयोग में लायी जाती है। वहाँ जहाँ एक प्ररूपक होता है साधारण निष्पत्ति द्वारा गुणित वह एक पुनः साधारण निष्पत्ति द्वारा गुणित किया जाता है; और जहाँ शून्य प्ररूपक होता जब यह फल एक द्वारा हासित होकर, प्रथमसाधारण निष्पत्ति द्वारा विभाजित किया जाता है । है वहाँ भी गुणित किया जाता है ताकि वर्ग प्राप्त हो पद द्वारा पुनः गुणित किया जाता है और एक कम तब वह श्रेदि के योग को उत्पन्न करता है ॥९४॥ मान लो इन में न का मान १२ है (९४) यह नियम पिछले नियम से केवल इसलिये भिन्न है कि इसमें वर्ग और सरल गुणन की विधियों को उपयोग में लाकर ( रन) को नई रीति से निकाला गया है। निम्नलिखित उदाहरण द्वारा रीति स्पष्ट हो जावेगी ( न = १२ ) ,,, 35 33 33 0 "" 55 1 १२ युग्म राशि है, इसलिये इसे २ के द्वारा विभाजित करते हैं और ० द्वारा प्रदर्शित करते हैं । ३ = ६ भी युग्म राशि है, ” २ के " ई ३ अयुग्म राशि है, इसलिये इसमें से १ पटाते हैं और = ३-१२ युग्म राशि है, इसलिये इसे २ द्वारा विभाजित करते ३१ अयुग्म राशि है, इसलिये इसमें से एक घटाते हैं हैं और १ "" ० "" और १ "" 33 " " "" [ २९ 39 "" 93 39 "" | " | ” | १ - १ = ०, जो क्रिया के इस भाग को समाप्त करती है । अब, निरूपक स्तम्भ में ( जिसमें अङ्क उपर्युक्त विधि द्वारा निकालते हैं ) अंतिम एक को र द्वारा गुणित करते हैं, जिससे र प्राप्त होता है; क्योंकि इस में उसके ऊपर है, र को ऊपर की तरह प्राप्त कर वर्गित करते हैं जिससे र ० है; क्योंकि इस • के ऊपर १ है, १ र देता है; चूँकि इस १ के ऊपर र जो प्राप्त होता है अब र के द्वारा गुणित करने पर है, इस र को वर्गित करते हैं जो र ६ देता है; और २' को वर्गित करते हैं जोर ० चूँकि फिर से इस के ऊपर दूसरा शून्य है, इस देता है। इस तरह र का मान सरल वर्ग करने और गुणन करने की क्रियाओं द्वारा प्राप्त होता है । इस विधि का उपयोग केबल रन के मान को सरलता से प्राप्त करने हेतु होता है । और, यह सरलतापूर्वक देखा जाता है कि यह रीति न की समस्त धनात्मक और अभिन्नात्मक ( integral ) अर्हाओं ( values ) के लिये प्रयुक्त की जा सकती है । अंतिम एक प्राप्त होता
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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