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गणितसारसंग्रहः
[२.८४
__ दृष्टधनाद्युत्तरतो द्विगुणत्रिगुणद्विभागत्रिभागादीष्टधनाद्युत्तरानयनसूत्रम्दृष्टविभक्तेष्टधनं द्विष्ठं तत्प्रचयताडितं प्रचयः । तत्प्रभवगुणं प्रभवो गुणभागस्येष्टवित्तस्य ।।८।।
अत्रोद्देशकः समगच्छश्चत्वारः षष्टिर्मुखमुत्तरं ततो द्विगुणम् । तद्वथादि हतविभक्तस्वेष्टस्याद्युत्तरे ब्रूहि ।।८५॥
इष्टगच्छयोव्यस्ताद्युत्तरसमधनद्विगुणत्रिगुणद्विभागत्रिभागादिधनानयनसूत्रम्व्येकात्महतो गच्छः स्वेष्टनो द्विगुणितान्यपदहीनः । मुखमात्मोनान्यकृतिर्द्विकेष्टपघातवर्जिता प्रचयः ॥८६॥
१ M गुणभागाद्युत्तरेच्छायाः । २ M गुण ।
सरलता के लिये, चुने हुए योग को ज्ञात योग द्वारा विभाजित कर दो स्थानों में रखते हैं । इस भजनफल को जब ज्ञात प्रचय द्वारा गुणित करते हैं तो इष्ट प्रचय प्राप्त होता है । वही भजनफल जब ज्ञात प्रथम पद से गुणित किया जाता है तो चाहा हुआ प्रथम पद उस श्रेढि का प्राप्त होता है जिसका कि योग ज्ञात श्रेढि के योग का या तो अपवर्त्य अथवा भिन्नात्मक अंश (भाग ) होता है ॥८४॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
६०, ज्ञात प्रथम पद है, ज्ञात प्रचय उससे दुगुना है, और पदों की संख्या ( ज्ञात दी हुई श्रेढि में तथा इष्ट समस्त श्रेढियों में) ४ है। ज्ञात योग को २ से आरम्भ होने वाली संख्यओं द्वारा गुणित अथवा भाजित करने पर प्राप्त हुए योगों वाली श्रेढियों के प्रथम पद और प्रचय निकालो ॥८५।।
जिनके पदों की संख्या मन से चुनी जाती है ऐसी दो श्रेढियों के पारस्परिक विनिमित प्रथम पद और प्रचय तथा उन श्रेढियों के योगों (जो बराबर हों, अथवा जिनमें से एक दूसरे का दुगुना, तिगुना, आधा, तिहाई अथवा ऐसा ही कोई अपवर्त्य या भाग रूप हो,) को निकालने का नियम
किसी एक श्रेढि के पदों की संख्या स्वतः से गुणित होकर तथा एक द्वारा हासित होकर और फिर चुने हुए (दो श्रेढियों के योग के ) अनुपात द्वारा गुणित होकर, और तब दूसरी श्रेढि के पदों की संख्या की दुगुनी राशि द्वारा हासित होकर कोई एक श्रेढि के ( परस्पर बदलने योग्य ) प्रथम पद को प्राप्त होती है। दूसरी श्रेढि के पदों की संख्या की वर्गराशि पदों की संख्या द्वारा ही स्वतः ह्वासित होकर और तब चुनी हुई निष्पत्ति द्वारा तथा प्रथम श्रेढि के पदों की संख्या के गुणनफल की दुगुनी राशि द्वारा हासित होकर, उस श्रेढि के परस्पर बदलने योग्य प्रचय को उत्पन्न करती है ॥८६॥
(८४) प्रतीक रूप से, अ, =य, अ, ब, =य ब; जहाँ य,, अ, ब, ऐसी श्रेदि के क्रमशः योग,प्रथम पद और प्रचय हैं जिसका योग चुन लिया जाता है। यदि दो श्रेढियों का योग दिया गया हो, तो दो प्रथम पदों की निष्पत्ति (ratio) और दो प्रचयों का अनुपात में ही सर्वदा नहीं रहता । यहाँ जो हल दिये गये हैं वे कुछ विशिष्ट दशाओं में प्रयुक्त होते हैं।
(८६) बीजीय रूप से, अन (न-१)xप-२न, और ब= (न)२-न,-२पन; जहाँ, अ, ब और न क्रमशः प्रथमपद, प्रचय और श्रेटि के पदों की संख्या हैं; न, द्वितीय श्रेढि के पदों की संख्या है, और पदो योगों की निष्पत्ति है। अ और ब इस तरह निकालने के बाद दूसरी श्रेदि के प्रथमपद और प्रचय क्रमशः ब और अ होंगे।