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________________ -२. ८३] परिकर्मव्यवहारः [२५ आदिधनोनं मिश्रं रूपोनपदार्धगुणितगच्छेन।सैकेन हृतं प्रचयो गच्छविधानात्पदं मुखे सैके॥८।। मिश्रादपनीतेष्टौ मुखगच्छौ प्रचयमिश्रविधिलब्धः। यो राशिः स चयः स्यात्करणमिदं सर्वसंयोगे॥२॥ अत्रोद्देशकः द्वित्रिकपञ्चदशामा चत्वारिशन्मुखादि मिश्रधनम् । तत्र प्रभवं प्रचयं गच्छं सर्वं च मे ब्रूहि ॥८३।। १ M पदोनपदकृतिदलेन सैकेन । भक्तं प्रचयोऽत्र पदं गच्छविधानान्मुखे सैके ।। आदिधन से हासित कर और तब पदों की संख्या तथा एक कम पदों की संख्या की आधी राशि के गुणनफल में एक जोड़कर प्राप्त हुई राशि द्वारा विभाजित करते हैं तो प्रचय प्राप्त होता है। मिश्रधन में से पदों की संख्या विपाटित ( भङ्ग) करने में पदों की संख्या को प्राप्त करने का नियम ही प्रयुक्त • करते हैं, जब कि सब पदों को संवादरूप से (correspondingly ) बढ़ाने के लिये प्रथम पद को एक द्वारा बढ़ा हुआ मान लिया जाय ।।८।। मिश्रधन को विश्लेषित करने की विधि इस प्रकार हैमिश्रधन को मन से चुने हुए प्रथम पद और पदों की संख्या द्वारा हासित करते हैं और तब उत्तरमिश्रधन को भङ्ग करने वाले नियम को इस अंतर में प्रयुक्त करने पर प्रचय प्राप्त होता है ।।८।। उदाहरणार्थ प्रश्न ४० में क्रमशः २, ३, ५ और ५० जोड़कर आदि मिश्रधन और अन्य मिश्रधन बनाते हैं। मुझे बतलाओ कि इन दशाओं में प्रथम पद,प्रचय, पदों की संख्या और कुल तीनों, क्रमशः क्या-क्या होंगे? ॥८॥ ( दृष्ट ) ज्ञात योग से दी हुई समान्तर श्रेढि का प्रथम पद और प्रचय, द्वितीय श्रेढि के प्रथम पद और प्रचय; जहाँ मन से चुना हुआ योग दी हुई श्रेढि के ज्ञात योग का दुगुना, तिगुना, आधा, तिहाई अथवा इसी तरह का गुणक अथवा भिन्नीय रूप है, निम्नलिखित नियम से प्राप्त करते हैं (८०-८२) मिश्रधन का अर्थ मिला हुआ योग होता है । जब प्रथम पद अथवा प्रचय अथवा पदों की संख्या अथवा इन सब तीनों को समान्तर श्रेदि के योग में जोड़ते हैं तब मिश्रधन प्राप्त होता है । इस तरह, यहाँ चार प्रकार के मिश्रधन का कथन किया है और वे क्रमशः आदि मिश्रधन, उत्तर मिश्रधन, गच्छ मिश्रधन और सर्व मिश्रधन हैं। आदिधन और उत्तरधन के लिये सूत्र ६३ और ६४ की पाद टिप्पणी न+ ---जहाँ 'य', देखिये । बीजीय रूप से सूत्र ८० इस तरह साधित होता है- अ= ...... २ जहाँ 'य" __य" - न अ आदि मिश्रधन है, अर्थात् य + अ है । सूत्र ८१ में ब= 7 है जहाँ य" उत्तर न (न-१)/२}+१ मिश्रधन है अर्थात् य + ब है। आगे, जब गच्छ मिश्रधन य" अर्थात् य + न होता है तो न का मान निकाला जा सकता है; क्योंकि य = अ+ (अ+ब) + (अ+२ ब)+......न पदों तक; और य" = (अ+१)+ (अ+3+ब)+ (अ+१+२ ब)+......न पदों तक; होता है। चूंकि सूत्र ८२ में, अ और न का मान किसी भी तरह चुन सकते हैं; अ, न और ब का मान अथवा सर्व मिश्रधन य" (जो य+अ+न+ब के तुल्य होता है ) निकालने का प्रश्न य" के किसी दिये गये मान से ब का मान निकालने के समान हो जाता है ।] (८३) प्रतीक रूप से प्रश्न यह है : (१) अ का मान निकालो जब य = ४२, ब= ३, न=५ हो । (२) ब का मान निकालो जब कि य" = ४३; अ =२ और न ५ हो। (३)न का मान बतलाओ जब कि य+न= ४५ अ-२ और ब=३ हो। (४) अ, ब और न का मान निकालो जब कि य+अ+ब+न =५० हो। ग० सा० सं०-४
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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