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________________ २४ ] गणित सारसंग्रहः [ २. ७६ द्विगुणित संकलितधनं गच्छहृतं रूपरहितगच्छेन । ताडितचयेन रहितं द्वयेन संभाजितं प्रभवः ॥ ७६ ॥ अत्रोद्देशकः नववदनं तत्त्वपदं भावाधिकशतधनं कियान्प्रचयः । पञ्च चयोऽष्ट पदं षट्पञ्चाशच्छतधनं मुखं कथय ॥७७॥ स्वेष्टाद्युत्तरगच्छानयनसूत्रम् - संकलिते स्वेष्टहृते हारो गच्छोऽत्र लब्ध इष्टोने । ऊनितमादिः शेषे व्येकपदार्थोद्धृते प्रचयः ॥ ७८ ॥ अत्रोद्देशकः चत्वारिंशत्सहिता पञ्चशती गणितमत्र संदृष्टम् । गच्छप्रचयप्रभवान्' गणितज्ञशिरोमणे कथय ॥७९॥ आद्युत्तरगच्छ सर्वमिश्रधनविश्लेषणे सूत्रत्रयम् — उत्तरधनेन रहितं गच्छेनैकेन संयुतेन हृतम् । मिश्रधनं प्रभवः स्यादिति गणकशिरोमणे विद्धि ||८०|| १ M विगणय्य सखे ममाचक्ष्व । एक कम पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा हासित करते हैं । प्राप्तफल को प्रचय द्वारा गुणित कर, जब दो के द्वारा विभाजित करते हैं तो श्रेढि का प्रथम पद प्राप्त होता है ॥ ७६ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न प्रथम पद ९ है; पदों की संख्या ७ है; और श्रेढि का योग १०५ है । प्रचय का मान क्या है ? अन्य श्रेढि का प्रचय ५ है, पढ़ों की संख्या ८ 'और योग १५६ है । बतलाओ प्रथम पद क्या है ? ॥७७॥ जब योग दिया गया हो तो इच्छानुसार प्रथम पद, प्रचय और पदों की संख्या निकालने का नियम जब योग को किसी चुनी हुई संख्या द्वारा विभाजित करते हैं तो भाजक श्रेटि के पदों की संख्या बन जाता है । जब इस भजनफल को किसी फिर से चुनी हुई संख्या द्वारा हासित करते हैं तो यह घटाई गई संख्या का प्रथम पद बन जाती है । घटाने के बाद प्राप्त शेष जब एक कम पढ़ों की संख्या की आधी राशि द्वारा विभाजित किया जाता है तो प्रचय उत्पन्न होता है ॥ ७८ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न इस प्रश्न में योग ५४० है । हे गणितज्ञों के शिरोमणि ! बतलाओ कि पदों की संख्या, प्रचय और प्रथम पद क्या होंगे ? ॥७९॥ प्रथम पद से संयुक्त अथवा प्रचय अथवा पदों की संख्या से अथवा इन सभी से संयुक्त समान्तर श्रेढि के योग को विश्लेषित करने के लिये तीन नियम-हे गणक शिरोमणि ! मिश्रधन को द्वारा विभाजित किया जाता है तो प्रथम उत्तर धन से हासित कर, एक अधिक पदों की संख्या पद प्राप्त होता है - ऐसा समझो ॥ ८० ॥ मिश्रधन को ( २य / न ) - ( न - १ ) ब २ (७६) बीजीय रूप से : अ = ( ७८ ) प्रतीक रूप से, इस प्रश्न में, जब य दिया गया होता है और अ तथा न को किसी भी इसलिये, दिये गये य के लिये, बके तरह चुनना होता है, तब ब का मान निकालना पड़ता है । कितने ही मान हो सकते हैं जो अ और न के चुने जाने पर जाते हैं तो को निकालने के लिये यहाँ दिया गया नियम सूत्र निर्भर हों । जब अ और न चुन लिये ७४ से मिलता है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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