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-२. ७५] परिकर्मव्यवहारः
[२३ अत्रोद्देशकः आदिौ प्रचयोऽष्टौ द्वौरूपेणा त्रयात्क्रमाद्वद्धौ । खाको रसाद्रिनेत्रं खेन्दुहरा वित्तमत्र को गच्छः ।।७१।। आदिः पञ्च चयोऽष्टौ गुणरत्नाग्निधनमत्र को गच्छः । षट् प्रभवश्व चयोऽष्टौ खद्विचतुः स्वं पदं किं स्यात् ।।७२।। उत्तराद्यानयनसूत्रम्आदिधनोनं गणितं पदोनपदकृतिदलेन संभजितम् ।प्रचयस्तद्धनहीनं गणितं पदभाजितं प्रभवः ॥७३॥ आद्युत्तरानयनसूत्रम्प्रभवो गच्छाप्तधनं विगतैकपदार्धगुणितचयहीनम्। पदहृतधनमायुनं निरेकपददलहतं प्रचयः॥७४।। प्रकारान्तरेणोत्तराद्यानयनसूत्रम्द्विहतं संकलितधनं गच्छहृतं द्विगुणितादिनारहितम् । विगतैकपदविभक्तं प्रचयः स्यादिति विजानीहि ।।७५।।
उदाहरणार्थ प्रश्न प्रथम पद २ है, प्रचय ८ है। इन दोनों को उत्तरोत्तर एक द्वारा बढ़ाते जाते हैं जिससे ३ श्रेढियाँ बन जाती हैं। इन तीन श्रेढियों के योग क्रमशः ९०, २७६ और १११० हैं। प्रत्येक श्रेढि के पदों की संख्या क्या है ? ॥७१॥ प्रथम पद ५ है। प्रचय ८ है; श्रेढि का योग ३३३ है । पदों की संख्या क्या है ? अन्य श्रेढि का प्रथमपद ६ है, प्रचय ८ है और योग ४२० है। पदों की संख्या क्या है ? ॥७२॥
प्रचय और प्रथम पद को निकालने का नियम--
श्रेढि का योग आदिधन द्वारा हासित किया जाता है, और इसे. पदों की संख्या द्वारा हासित पदों की संख्या के वर्ग द्वारा निरूपित राशि की आधी राशि द्वारा विभाजित करने पर प्रचय प्राप्त होता है।
श्रेढि के योग को उत्तरधन द्वारा हासित करने पर प्राप्त फल को पदों की संख्या द्वारा विभाजित करने पर श्रेढि का प्रथम पद प्राप्त होता है ॥७३॥
प्रथम पद और प्रचय प्राप्त करने का नियम
श्रेढि में पदों की संख्या द्वारा भाजित श्रेढि का योग, जब प्रचय और एक कम पदों की संख्या की आधी राशि के गुणन फल द्वारा हासित कर दिया जाता है तो श्रेढि का प्रथम पद प्राप्त होता है। योग को, पदों की संख्या से भाजित कर प्रथम पद द्वारा हासित करते हैं। प्राप्तफल को एक कम पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा विभाजित करने पर प्रचय प्राप्त होता है ॥७४॥
प्रचय और प्रथम राशि को अन्य विधि द्वारा निकालने के दो नियमः
श्रेहि के योग को २ से गुणित कर और पदों की संख्या से विभाजित कर प्रथम पद की दुगुनी राशि से हासित करते हैं। प्राप्तफल को एक कम पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा विभाजित करने पर प्रचय प्राप्त होता है ॥७५॥ श्रेढि के योग की दुगुनी राशि को पदों की संख्या से विभाजित कर
(७३) आदि-धन और उत्तरधन के लिये इस अध्याय के ६३ और ६४ वें सूत्र की पाद टिप्पणी देखिये । इस सूत्र को प्रतीक रूपसे प्रदर्शित करने पर वह निम्नरूप में साधित होता है
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य-न
अ
ब
और
(न
(न
य- न (न-१). अ% ......... २
-न)/२
... य_न- १.और ( ७४ ) बीजीय रूप से : अ =--
(२ य/न)-२ अ (७५) प्रतीक रूप से : ब= (१
न-१
और ब= ( य/न )-अ
न
ब
(यन ) (न-१)/२