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________________ -२. २९ ] परिकर्मव्यवहारः [ १३ यधिकदशत्रिशतयुतान्ये कत्रिंशत्सहस्रजम्बूनि । सैकाशीतिशतेन प्रहृताति नरेवैदैकांशम् ||२५|| त्रिदशसहस्री सैकाषष्टिद्विशती सहस्रषट्कयुता । रत्नानां नवपुंसां दत्तैकनरोऽत्र किं लभते ||२६|| asara क्रमेण हीनानि हाटकानि सखे । विधुजलधिबन्धसंख्यैर्नरैर्हृतान्येकभागः कः॥२७॥ यशीतिमिश्राणि चतुःशतानि चतुस्सहस्रघ्ननगान्वितानि । रत्नानि दत्तानि जिनालयानां त्रयोदशानां कथयैकभागम् ||२८|| इति परिकर्मविधौ द्वितीयो भागहारः समाप्तः ॥ वर्गः तृतीये वर्गपरिकर्मणिकरणसूत्रं यथा द्विसमवधो घातो वा स्वेष्टोनयुतद्वयस्य सेष्टकृतिः । एकाद्विचयेच्छागच्छयुतिर्वा भवेद्वर्गः ||२९|| १ यह श्लोक केवल M में प्राप्य है । RM एकद्वित्रिचतुःपञ्चषट् कैहींनाः क्रमेण संभक्ताः । सैकचतुःशतसंयुतचत्वारिंशजिनालयानां किम् || बतलाओ ? ||२५|| ३६२६१ मणि ९ व्यक्तियों को बराबर-बराबर दिये जाते हैं। एक व्यक्ति कितने मणि प्राप्त करता है ? ||२६|| हे मित्र, एक से आरम्भ कर ६ तक के अंकों को इकाई के स्थान से ऊपर की ओर के क्रम में रखकर और फिर क्रमानुसार हासित अंकों द्वारा संरचित संख्या की सुवर्ण मुद्राएँ ४४१ व्यक्तियों में वितरित की जाती हैं। प्रत्येक को कितनी मिलती हैं ? ||२७|| २८४८३ मणि १३ जिन मंदिरों में भेंट स्वरूप दिये जाते हैं । प्रत्येक मंदिर को कितना अंश प्राप्त होता है ? ||२८|| इस प्रकार, परिकर्म व्यवहार में, भागहार [ भाग ] नामक परिच्छेद समाप्त हुआ। वर्ग परिकर्म क्रियाओं में तृतीय [ वर्ग करने की क्रिया ] के नियम निम्नलिखित हैं दो सम राशियों का गुणनफल; अथवा दो सम राशियों में से किसी एक चुनी संख्या को प्रथम राशि में से घटाकर प्राप्त फल तथा दूसरी राशि में उस चुनी हुई संख्या को जोड़ने से प्राप्त फल, इन दोनों फलों के गुणनफल में उस चुनी हुई संख्या का वर्गफल जोड़ने पर प्राप्तफल, अथवा, गुणोत्तर ढि ( जिसमें प्रथमपद १ है और प्रचय २ है ) का अ पदों तक का योगफल, उस इच्छित राशि का वर्ग होता है ||२९|| दो या तीन या इससे अधिक संख्याओं का वर्ग, उन सब संख्याओं के वर्ग के योग (२५) यहाँ ३१३१३ को १३+३०० + ३१००० द्वारा दर्शाया गया है । (२६) यहाँ ३६२६१ को ३००००+१+ (६० + २०० + ६०००) द्वारा दर्शाया गया है । (२७) यहाँ दिया गया भाज्य, स्पष्ट रूप से, १२३४५६५४३२१ है । (२८) यहाँ २८४८३ को ८३ + ४०० + (४००० X ७) द्वारा निरूपित किया गया है । (२९) बीजगणित द्वारा बतलाये जाने पर यह नियम इस तरह का रूप लेता है (i) अ x अ = अ ' (iii) (अ + क) (अ क ) + कर = अ (iii) १+३+५+७+... अ पदों तक = अरे
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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