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________________ गणितसारसंग्रहः [२. १८ भागहारः द्वितीये भागहारकर्मणि करणसूत्रं यथा'विन्यस्य भाज्यमानं तस्याधःस्थेन भागहारेण । सदृशापवर्तविधिना भागं कृत्वा फलं प्रवदेत् ।।१८।। अथवाप्रतिलोमपथेन भजेद्भाज्यमधःस्थेन भागहारेण। सदृशापवर्तनविधिर्यद्यस्ति विधाय तमपि तयोः।१९।। अत्रोद्देशकः दीनाराष्टसहस्रं द्वानवतियुतं शतेन संयुक्तम् । चतुरुत्तरषष्टिनरैर्भक्तं कोऽशो नुरेकस्य ॥२०॥ रूपाग्रसप्तविंशतिशतानि कनकानि यत्र भाज्यन्ते । सप्तत्रिंशत्पुरुषैरेकस्यांश ममाचक्ष्व ॥२१॥ दीनारदशसहस्रं त्रिशतयुतं सप्तवर्गसंमिश्रम् । नवसप्तत्या पुरुषैर्भक्तं किं लब्धमेकस्य ॥२२॥ अयुतं चत्वारिंशञ्चतुस्सहस्त्रैकशतयुतं हेम्नाम् । नवसप्ततिवसतीनां दत्तं वित्तं किमेकस्याः।।२३।। सप्तदशत्रिशतयुतान्येकत्रिंशत्सहस्रजम्बूनि । भक्तानि नवत्रिंशन्नरैर्वदैकस्य भागं त्वम् ।।२४।। १ यह श्लोक P में प्राप्य नहीं है । २ . स । ३ M कोऽशो नुरेकस्य । ४ यह श्लोक P में प्राप्य नहीं है । ५ B और K हेमम् । ६ इस श्लोक में दिये गये प्रश्न का पाठ M में निम्न प्रकार है त्रिशतयुतैकत्रिंशत्सहस्रयुक्ता दशाधिकाः सप्त । भक्ताश्चत्वारिंशत्पुरुषैरेकोनैस्तत्र दीनारम् ॥ भागहार [ भाग] परिकर्म क्रियाओं में द्वितीय. भागहार क्रिया का नियम निम्नलिखित है भाज्य को लिखकर उसे उभयनिष्ठ (साधारण) गुणनखंडों को अलग करने के रीति के अनुसार भाजक द्वारा भाजित करो। भाजक को भाज्य के नीचे रखो और तब, परिणामी भजनफल को प्राप्त करो ॥१८॥ अथवा–यदि सम्भव हो, तो उभयनिष्ठ गुणनखंड को निरसित करने की विधि से, भाज्य के नीचे भाजक को रखकर.भाज्य को प्रतिलोम विधि से अर्थात् बायें से दायें भाजित करना चाहिये ॥१९॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ६४ व्यक्तियों में ८१९२ दीनार बाँटे गये हैं। प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में कितने आये हैं ? ॥२०॥ मुझे एक व्यक्ति का हिस्सा बतलाओ जब कि २७०१ स्वर्ण के टुकड़े ३७ व्यक्तियों में बाँटे जाते हैं । ॥२१॥ १०३४९ दीनार ७९ व्यक्तियों में बाँटे जाते हैं। बतलाओ एक व्यक्ति को क्या प्राप्त होगा? ॥२२॥ १४१४१ स्वर्ण के टुकड़े ७९ मंदिरों में दिये जाते हैं। बतलाओ प्रत्येक मंदिर में कितना धन दिया जाता है ? ॥२३॥ ३१३१७ जम्बू फल (गुलाबी सेव ) ३९ व्यक्तियों में बाँटे गये हैं। प्रत्येक का अंश ( हिस्सा) बतलाओ ? ॥२४॥ ३१३१३ जम्बू फल १८१ व्यक्तियों में बाँटे गये हैं। प्रत्येक का अंश (२०) मूल गाथा में ८१९२ को ८००० + ९२+ १०० द्वारा लिखित किया गया है। (२२) मूल गाथा में १०३४९ को १००००+३०० + (७) द्वारा निदर्शित किया गया है। (२३) यहाँ १४१४१ को १०००० + (४० + ४०००+१+१००) द्वारा कथित किया गया है। (२४) यहाँ ३१३१७ को १७ + ३०० +३१००० द्वारा दर्शाया गया है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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