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________________ -1. ४.] १. संज्ञाधिकार संख्या तावलिरुच्यासः स्तोकस्तूच्छाससप्तकः । स्तोकाः सप्त लवस्तेषां सार्धाष्टात्रिंशता घटी ॥३३।। घटीद्वयं मुहूर्तोऽत्र मुहूर्तेस्त्रिंशता दिनम् । पञ्चनैत्रिदिनैः पक्षः पक्षौ द्वौ मास इष्यते ॥३४॥ ऋतुर्मासद्वयेन स्यात्रिभिस्तैरयनं मतम् । तवयं वत्सरो वक्ष्ये धान्यमानमतः परम् ॥३५॥ अथ धान्यपरिभाषा विद्धि षोडशिकास्तत्र चतस्रः कुडेहो भवेत् । कुडहाँश्चतुरः प्रस्थश्चतुः प्रस्थानथाढकम् ॥३६॥ चतुर्भिराढोणो मानी द्रोणैश्चतुर्गुणैः । खारी मानी चतुष्केण खार्यः पञ्च प्रवर्तिकाः ॥३७॥ सेयं चतुर्गुणा वाहः कुम्भः पञ्च प्रवर्तिकाः । इतः परं सुवर्णस्य परिभाषा विभाष्यते ॥३८।। अथ सुवर्णपरिभाषा चतुर्भिर्गण्डकैर्गुञ्जा गुञ्जाः पञ्च पणोऽष्ट ते । धरणं धरणे कर्षः पलं कर्षचतुष्टयम् ।।३९।। ___ अथ रजतपरिभाषा धान्यद्वयेन गुञ्जका गुञ्जायुग्मेन माषकः । माषषोडशकेनात्र धरणं परिभाष्यते ॥४॥ १ KB वो। २ K वां । ३ सम्पूर्ण धान्य परिभाषा के लिए, P और B में निम्नलिखित रूप में विशेष उल्लेख है। M का पाठान्तर, कोष्ठकों में अंकित किया गया है। आद्य षोडशिका तत्र कड (इ) बः प्रस्थ आढकः । द्रोणो मानी ततः खारी क्रमेण ( मशः) चतुराहताः॥ (सहस्त्रैश्च त्रिभिष्पडभिश्शतैश्च व्रीहिभिरसमम् । यरसम्पूर्णोऽभवत्सोयं कुडुबः परिभाष्यते ॥) प्रवर्तिकात्र ताः पञ्च वाहस्तस्याचतुर्गुणः । कुम्भस्सपादवाहस्स्यात् (पञ्च प्रवर्तकाः कुम्भः) स्वर्णसंज्ञाथ वर्ण्यते ।। संख्यात आवलियों से उच्छास बनता है, सात उच्छासका एक स्तोक और सात स्तोक का एक लव होता है तथा साढ़े अड़तीस लव मिलकर एक घटी बनती है ॥३३॥ दो घटी का एक मुहूर्त, तीस महत का एक दिन, पंद्रह दिन का एक पक्ष और दो पक्ष का एक मास होता है॥३४॥ दो मास मिलकर एक ऋतु, तीन ऋतुयें मिलकर एक अयन और दो अयन मिलकर एक वर्ष बनता है। इसके पश्चात् मैं धान्य के माप के विषय में उल्लेख करता हूँ ॥३५॥ धान्य-परिभाषा [ धान्यमाप सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि ] चार षोडशिका मिलकर एक कुडहा बनता है, चार कुडहा मिलकर एक प्रस्थ बनता है और चार प्रस्थ का एक आढक होता है ॥३६॥ चार आढक का द्रोण, चार द्रोण की एक मानी, चार मानी की. एक खारी और पाँच खारी की प्रवर्तिका होती है ॥३७॥ चार प्रवर्तिका का एक वाह और पाँच प्रवर्तिका का एक कुम्भ होता है । इसके पश्चात् स्वर्णमाप-सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि दी जाती है ॥३८॥ सुवर्ण-परिभाषा [ स्वर्णमाप सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि ] चार गंडक मिलकर एक गुंजा बनती है; पाँच गुंजा मिलकर एक पण बनता है और इसका आठगुणा एक धरण होता है। दो धरण मिलकर एक कर्ष बनता है और चार कर्ष मिलकर एक पल बनता है ॥३९॥ रजत-परिभाषा [ रजतमाप सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि ] दो धान्य मिलकर एक गुंजा बनती है, दो गुंजा मिलकर एक माशा और सोलह माशा मिलकर एक धरण बनता है ॥४०॥ ढाई धरण का एक कर्ष एवं चार पुराण ( या कर्ष ) का एक दल होता है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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