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________________ गणितसारसंग्रहः [१. २५ तत्र तावत् क्षेत्रपरिभाषा जलानलादिभिर्नाशं यो न याति स पुद्बलः । परमाणुरनन्तैस्तैरणुः सोऽत्रादिरुच्यते ॥२५।। त्रसरेणुरतस्तस्माद्रथरेणुः शिरोरुहः । परेमध्यजघन्याख्या भोगभूकर्मभूभुवाम् ॥२६॥ लीक्षा तिलस्स एवेह सर्षपोऽर्थे यवोऽङ्गलम् । क्रमेणाष्टगुणान्येतद्वयवहारामुलं मतम् ॥२७॥ तत्पश्चकशतं प्रोक्तं प्रमाणं मानवेदिभिः । वर्तमाननराणामङ्गुलमात्माङ्गुलं भवेत् ॥२८॥ व्यवहारप्रमाणे द्वे"राद्धान्ते लौकिके विदः । आत्माङ्गलमिति त्रेधा तिर्यक्पादः षडङ्गलैः ।।२९।। पादद्वयं वितस्तिः स्यात्ततो हस्तो द्विसङ्गुणः । दण्डो हस्तचतुष्केण क्रोशस्तद्विसहस्रकम् ।।३०।। योजनं चतुरः क्रोशान्प्राहुः क्षेत्रविचक्षणाः । वक्ष्यतेऽतः परं कालपरिभाषा यथाक्रमम् ।।३।। अथ कालपरिभाषा अणुरण्वन्तरं काले व्यतिक्रामति यावति । स काल: समयोऽसंख्यैः समयैरावलिर्भवेत् ॥३२॥ १ KP णु । २ MB व° । ३ PB ख्य । ४ । धि । ५ M ऽन्ये । क्षेत्र परिभाषा [ क्षेत्रमाप सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि ] पुद्गल का अनन्तवाँ सूक्ष्म वह भाग जो न तो पानी द्वारा, न अग्नि द्वारा और न अन्य किन्हीं ऐसी वस्तुओं द्वारा नाशको प्राप्त है, परमाणु कहलाता है। ऐसे अनन्त परमाणुओं द्वारा उत्पन्न एक-एक अणु क्षेत्रमाप में प्रथम माप है। इससे उत्पन्न क्रमशः आठ-आठ गुणे त्रसरेणु, रथरेणु, बालमाप, जूं माप, तिल या सरसों माप, यव माप तथा अंगुल माप हैं। अंगुल माप आदि उनके लिये हैं जो भोगभूमि और कर्मभूमि में उत्पन्न होते हैं। ये उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य प्रकार के होते हैं । यह अंगुल व्यवहारांगुल भी कहलाता है ॥२५-२७॥ जो माप की विधियों से परिचित हैं, कथन करते हैं कि इस व्यवहार-अंगुल का ५०० गुणा प्रमाणांगुल होता है। वर्तमान काल के मनुष्यों की अंगली का माप आत्मांगुल कहा जाता है ॥२८॥ वे कहते हैं कि संसार के स्थापित व्यवहारों में अंगल तीन प्रकार का होता है, प्रथम व्यवहारांगुल, द्वितीय प्रमाणांगुल और तृतीय उनका आत्मांगुल । छः अंगुल मिलकर पाद-माप बनता है जो आरपार रूप से नापा जाता है ॥२९॥ दो ऐसे पाद मिलकर वितस्ति बनाते हैं और दो वितस्ति मिल कर एक हस्त बनता है। चार हस्त से एक दण्ड बनता है और दो हजार दंड मिलकर एक क्रोश बनता है ॥३०॥ जो क्षेत्रफल के मापज्ञान में सिद्धहस्त हैं, कहते हैं कि चार क्रोश मिलकर एक योजन होता है ॥३१॥ इसके पश्चात्, मैं समय के माप के सम्बन्ध में क्रमवार पारिभाषिक शब्दावलि का उल्लेख करता हूँ। काल-परिभाषा [ काल-सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि ] वह काल जिसमें एक (गतिशील ) अणु' किसी प्रदेशबिन्दु से दूसरे निकटतम प्रदेशबिन्दु तक जाता है समय कहलाता है। असंख्य समय मिलकर एक आवलि बनती है ॥३२॥ (२५-२७) क्षेत्रमाप-सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावलि को स्पष्ट रूप से समझने के लिये परिशिष्ट ३ देखिये। ___ अणु से आठ गुना त्रसरेणु, त्रसरेणु से आठगुना रथरेणु, रथरेणु से आठगुना बालमाप इत्यादि जो माप वर्णित किये गये हैं। वे क्रमवार ऐसे हैं कि प्रत्येक पूर्वानुगामी माप से आठगुना है; तथा प्रत्येक उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य प्रकार का है। १ यहाँ अणु का आशय परमाणु से है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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