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________________ मानी माष शब्द मिश्रधन मुख मुरज मुहूर्त मूल मूलमिश्र मेड मृदंग (अन्वायाम छेद) यव यद कोटि योग योजन रथरेणु रूप रोमकापुरी सूत्र ३७ ४० ८०-८२ ५० ३२ * w m २६ ३ ३ ५ ३२ २७ ४२ ५३ ४२ ३१ २६ ९७३ अध्याय पृष्ठ १ १ २ ७ 9 १ २ ४ ४ ५ ४ ५ १ ५ गणित सार संग्रह १८८ मृदंग के समान डिंडिम या भेरी । ५ काल माप ८३ स्पष्टीकरण धान्य सम्बन्धी आयतन माप । रजत का भार माप टंक (सिक्का) । २४ संयुक्त या मिला हुआ योग । १९३ चतुर्भुज की ऊपरी भुजा (top-side) शङ्खाकार और | मृदङ्ग आकार वाले क्षेत्रों में भी मुख का उपयोग हुआ है। १५ वर्गमूल; प्रकीर्णक भिन्नों को एक जाति ६८ ६८ | जिसमें वर्गमूल अंतर्भूत हो; प्रकीर्णक मित्रों की एक जाति । जम्बूद्वीप के मध्यभाग में स्थित सुमेरु पर्वत । विशेष विवरण के लिये त्रिलोक प्रज्ञप्ति भाग २ में (४ / १८०२ - १८११ ; ४ / २८१२, २८२३) देखिये । १ ४ १ ६ ९ २७० १८८ एक प्रकार की डिंडिम या भेरी । १ ४ ६ १११ ९ २७० ४९ अभ्युक्ति परिशिष्ट ४ की सूची २ देखिये । परिशिष्ट ४ की सूची ५ देखिये | तपस्या; ध्यान का अभ्यास लम्बाई का माप एक प्रकार का धान्य लम्बाई का माप परिशिष्ट ४ की एक प्रकार का धातु माप । सूची १ देखिये । लंका के पूर्व से ९०० की ओर एक स्थान । ७५ वचन काय के निमित्त से आत्मा के ( जैन परिभाषा ) प्रदेशों के चंचल होने की क्रिया । पुल कण पूर्णांक | । लंका के पश्चिम से ९०° की ओर एक स्थान । परिशिष्ट ४ की सूची २ देखिये । ( अन्य मत से ) परिशिष्ट ४ की सूची १ देखिये । 59 59
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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