SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितसारसंग्रह महावीराचार्य और ब्रह्मगुप्त आदि के प्रश्नों तथा अन्य प्रकरणों की भिन्नता के सम्बन्ध में डेविड यूजेन स्मिथ का निम्नलिखित वक्तव्य दृष्टव्य है: "......For example, all of these writers treat of the areas of polygons, but Mahavirācārya is the only one to make any point of those that are reentrant. All of them touch upon area of a segment of a circle, but all give different rules. The so called janya operation is akin to work found in Brahmagupta and yet none of the problems is the same. The shadow problems, primitive cases of trigonometry and gnomonics, suggest a similarity among these three great writers, and yet those of Mahāvirācārya are much better than the one to be found in either Brahmgupta or Bhasker, and no question is duplicated."* महावीराचार्य द्वारा गणितग्रंथ के सिवाय 'ज्योतिष पटल' ग्रंथ भी रचित किए जाने की सम्भावना "भारतीय ज्योतिष के लेखक पं० नेमिचंद्र शास्त्री ने प्रकट की है। अभी तक इसके लिये पुष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं हो सके हैं। गणित इतिहास का उपर्यत सामान्य अवलोकन हमने मुख्यतः ई. टी. बेल के "Develop ment of Mathematics". और विभूतिभूषण दत्त तथा अवधेशनारायण सिंह के, "History of Hindu Mathematics" नामक ग्रंथों का आधार लेकर दिया है। चीन के सम्बन्ध में अभी हमें यथेष्ट साम्रगी नहीं मिल सकी है। गणित इतिहास का विशिष्ट अवलोकन अब हम भारतीय गणित इतिहास के अंधतम काल में प्रवेश करने का प्रयत्न करेंगे। इस काल में, विशेषकर यूनान और भारत में सम्भवतः बेबिलन, मिस्र और भारत की प्राचीन मृतप्रायः गणित में अकस्मात् गति आई। गणित द्वारा अलौकिकीय विषयों को बांधने के अभूतपूर्व प्रयास होने लगे। इस प्रयास के चिह्न यूनान में मुख्यतः पिथेगोरस के वर्गों में और विशेष रूप से भारत में तीर्थकर महावीर के तीर्थ में परिलक्षित किए गये हैं। आत्मा को सत्य की ओर आकर्षित करने के लिए केवल इन्हीं वर्गों में दर्शन, धर्म की धाराओं में गणित का प्रयोग अद्वितीय है। यह निश्चित है कि इस काल में विश्व की प्राचीन गणित में इस प्रयोजन से बीज बोया गया, कि बीजगणित के द्वारा प्रस्फुटित पारमार्थिक बोध, उपादेय में एकाग्रता की सिद्धि दे सके। एक ओर यूनान में पिथेगोरस द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के साथ ही साथ संख्या सिद्धान्त से पुष्ट दर्शन जन्म मरण के चक्र * Introduction to English Translation & Notes of गणतसार संग्रह by M. Rangacharya, (1912). भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। चीन में तत्सम्बन्धित प्रयासों की खोज के लिये अभी हमें उपयुक्त सामग्री प्राप्त नहीं हुई है। फिर भी, जो कुछ हमें मिल सका है उसे अंत में प्रस्तुत किया है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy