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प्रस्तावना
ही पर्याप्त प्रगति कर चुकी थी। बख्शाली हस्तलिपि में इसे यदृच्छ, वाँछा या कामिका के नाम से अभिधानित किया गया है।
महावीर के बीजगणित तथा काल्पनिक राशि के विषयमें उनकी प्रतिभा का परिचय देने के सम्बन्ध में ई. टी. बेल की अभ्युक्ति है
"The rule of signs became common in India after their restatement by Mahavira in the ninth century....The early history of compplex numbers is much like that of negatives, a record of blind manipulations, unrelieved by any serious attempt at interpretation or understanding. The first clear recognition of imaginaries was Mahavira's extremely intelligent remark in the ninth century that, in the nature of things, a negative number has no square root. He had mathematical insight enough to leave the matter there, and not to proceed to meaningless manipulations of unintelligible symbols." +
इसके अतिरिक्त ग्रंथकार ने व्यापकीकृत (generallized) पद्धति वाले एकघातीय समीकरणों को हल करने के नियम दिये हैं, और अनेक अज्ञात वाले युगपत् द्विघात समीकरणों को हल किया है । उन्हें ज्ञात था कि वर्ग समीकरण के दो मूल होते हैं ।
जहाँ डाओफेन्टस ने म, न भुजाएँ लेकर समकोण त्रिभुज बनाया, वहाँ महावीर ने म, न भुजाएँ लेकर आयत की रचना की है। अध्याय ७ की ९५३, ९७१, ११२३ वीं गाथाओं में महाबीर ने दिये गये कर्ण (अ) को लेकर सभी सम्भव समकोणों को प्राप्त करने के लिये, अर्थात् क +ख = अ को लेकर हल करने के लिये तीन नियम दिये हैं। प्रथम दो नियम एक दृष्टि से ठीक नहीं हैं, क्योंकि
अ२-१४ या अ२-२ परिमेय ( rational) तब तक नहीं हो सकते, जब तक कि प को ठीक तरह न चुना जाय । तीसरा नियम बड़े महत्व का है। यह रीति, बाद में यूरोप में, पीज़े ( Pisa) के लेन? फीबोनाचि ( Leonardo Fibonacoi) ने १२०२ ईस्वी में फिर से खोजी गई। इस विधि का उद्गम शुल्व सूत्रों में है।
ब्रह्मगुप्त और महावीर दोनों ने चतुर्भुज क्षेत्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये निम्नलिखित सूत्र दिया है:- (सा-फा) (सा - खा) (सा- गा) (सा - घा) जहां सा, अर्धपरिमाप है और का, खा, गा, घा भुजाओं के माप हैं। पर यह सूत्र केवल चक्रीय चतुर्भुजों के लिए ठीक उतरता है। इसी प्रकार, विषम त्रिभुज के क्षेत्रफल के सम्बन्ध में नियम दिये गये हैं।
* देखिये, मूल गाथा ५२, प्रथम अध्याय ।
Development of Mathematics,pp. 173,175 1945)
1 उपर्युक्त वर्णन से कहा जा सकता है कि भारतीयों ने बीजगणित के विज्ञान को दो मुख्य भागों में विभक्त किया। एक भाग तो बीज (विश्लेषण analysis) का विवेचन करता है, और दूसरा भाग ऐसे विषयों का जो बीज के लिये आवश्यक हैं। वे विषय, चिह्नों के नियम, शून्य और अनन्ती की अंकगणित, अज्ञातों के साथ क्रियाएँ, करणी, कुट्टक और पेलियन समीकरण ( Pellian equation ) हैं ।