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________________ प्रस्तावना 13 से विमुक्त होने का साधन प्रतीत होता है, वहां भारत में "सुखी रहें सब जीव जगत के" जैसी भावनाओं से प्रेरित तत्वों के सामान्यकरण की सीमा “खम्मामि सव्व जीवाणं, सव्वे जीवा खमन्तु मे । मेत्ती मे सव्व भूदेसु, बैरं मझं ण केणवि ॥" में परिलक्षित होकर राशि सिद्धान्त की प्रयुक्ति से अनन्तत्व को प्राप्त हुई दिखाई देती है । हमारा यह संकेत है कि यूनान और भारत के गणित की तुलना का उक्त आधार सम्भवतः उपयोगी सिद्ध होगा । इस तुलना का अभिप्राय किसी देश की महानता आदि दिखाने का नहीं है, वरन् यह बतलाने का है कि सत्य और अहिंसा के तत्व विश्व के गुरुता केन्द्र को शांति के प्रांगण में खींचकर ले जाते हैं, और इस खिंचाव में जो आदान प्रदान होता है वहां सापेक्षता कृत परिवाद विश्वबंधुत्व के अंचल में विलीन हो जाते हैं। यही कारण है कि ऐसे समय में उक्त तत्वों से अभिप्रेरित खोजों के इतिहास को महत्व नहीं दिया जाता, जिससे इतिहास काल का मौन और अंध रहना स्वभाविक प्रतीत होता है । पुनर्जागरण के इतिहास के तत्वों की खोज करने के लिए हम पिथेगोरस का भ्रमण पथ अपनावेंगे । इस भ्रमण पथ के विषय में अभ्युक्ति प्रसिद्ध है कि "Like many others of the sages in that Kingdom (Egypt), he was carried captive to Babylon, where he conversed with the Persian and Chaldean Magi; and travelled as far as India, and visited the Gymnosophists." * तदनुसार हम सर्व प्रथम मिस्र देश के वर्द्धमान महावीर कालीन पुनर्जागरण के इतिहास पर प्रकाश डालेंगे । थेलीज़ (६४० ई.पू.) और पिथेगोरस, दोनों का भ्रमण मिस्र में सेइटिक युग (Saitic Period) ६६३-५२५ ईस्वी पूर्व में हुआ होगा । इस समय मिस्र में कूफू (Khufu) कालीन सिद्धान्तों की जो पुनर्जागृति हुई वह (क्षितिज में उदय होने वाले 'अज्ञान अंधकार विनाशक' सूर्य-Horus em akhet के परम्परागत प्रतीक) गीज़ा (Giza) के स्फिंक्स (Sphinx) से सहसम्बन्धित थी। कूफू के सम्बन्ध में नवीन मत यह है कि इस पराक्रमी नृप ने ई. पूर्व २६०० के लगभग बलि प्रथा का अंत कर जनता के हित में उन्हें विभिन्न कार्यों में संलग्न किया था। मध्यपूर्व की प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताओं वाले देशों में स्फिंक्स की विभिन्न मुद्राएं रूढ़ि रूप से पूजा की पात्र रही हैं। जिसके मुख को छोड़ कर शेष अंग सिंह का है ऐसे स्फिंक्स के मिस्री नाम क्रमशः समस्तावतारों में सूर्य ( Horem-akhet-Kheperi-Ra-Atum 14201441 B. C.), जीवित मूर्ति ( Seshepankh ), सिंह ( Sinuhe), आदि रहे हैं । इस स्फिंक्स मूर्ति में मानव वदन देकर, इतिहासकारों के मतानुसार, सिंह के आतङ्क में बुद्धि, शक्ति और दया का सम्मिश्रण किया गया है। टालेमीय ( Ptolemaic) कालीन लेख में इस मूर्ति को तीन मुकुट युक्त बतलाकर मानों तीनों लोकों के नाथ की उपाधि से विभूषित किया है “And Horus of Edfu transformed himself into lion which had the face of a man, and which was crowned with the Triple Crown (')."+ सम्भवतः २६ वे राजवंश काल ( ईस्वी पूर्व ५८८-५६९ ?) की महत्वपूर्ण इन्वेन्टरी स्टीले ( Inventory Stela ) में अंकित लेख * Encyclopedia Americana, vol. 23, p. 47, (1944) + Salem Hossan : Tne sphinx, p, 80,Cairo ( 1949)
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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