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________________ २५९ -८. ३०३] खातव्यवहारः व्यासार्धघनार्धगुणा नव गोलव्यावहारिकं गणितम् । तद्दशमांशं नवगुणमशेषसूक्ष्मं फलं भवति ॥ २८ ॥ अत्रोद्देशकः . षोडशविष्कम्भस्य च गोलकवृत्तस्य विगणय्य । किं व्यावहारिकफलं सूक्ष्मफलं चापि मे कथय ॥ २९३ ।। शृंगाटकक्षेत्रस्य खातव्यावहारिकफलस्य खातसूक्ष्मफलस्य च सूत्रम्भुजकृतिदलघनगुणदशपद नवहृव्यावहारिकं गणितम् । त्रिगुणं दशपदभक्तं शृङ्गाटकसूक्ष्मघनगणितम् ।। ३०३ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न अर्द्ध व्यास के धन की अर्द्धराशि, ९ द्वारा गुणित होकर, गोलाकार क्षेत्र से वेष्टित जगह की घनाकार समाई का सन्निकट मान उत्पन्न करती है। यह सन्निकट मान ९ द्वारा गुणित होकर और १० द्वारा भाजित होकर, शेषफल की उपेक्षा करने पर, घनफल का सूक्ष्म माप उत्पन्न करता है ॥ २८ ॥ किसी १६ व्यास वाले गोल के संबंध में उसके घनफल का सन्निकट मान तथा सूक्ष्म मान गणना कर बतलाओ ॥ २९ ॥ श्रङ्गाटक क्षेत्र (त्रिभुजाकार स्तूप ) के आकार के खात की घनाकार समाई के व्यावहारिक एवं सूक्ष्म मान को निकालने के लिये नियम, जबकि स्तूप की ऊँचाई आधार निर्मित करने वाले समत्रिभुज को भुजाओं में से एक की लंबाई के समान होती है ___ आधारीय समभुज त्रिभुज की भजा के वर्ग की भर्खराशि के घन को १० द्वारा गणित किया जाता है । परिणामी गुणनफल के वर्गमूल को ९ द्वारा भाजित किया जाता है। यह सन्निकट इष्ट मान को उत्पन्न करता है । यह सन्निकट मान, जब ३ द्वारा गुणित होकर १० के वर्गमूल द्वारा भाजित किया जाता है, तब स्तूप खात की घनाकार समाई का सूक्ष्म रूप से ठीक माप उत्पन्न होता है ॥ ३०॥ ( २८३ ) यहाँ दिये गये नियमानुसार गोल का आयतन (१) सन्निकट रूप से (६) होता है और (२) सूक्ष्म रूप से (६)xx होता है। किसी गोल के आयतन के घनफल का शुद्ध सूत्र ग ( त्रिज्या ) है । यह ऊपर दिये गये मान से तुलनायोग्य तब बनता है, जबकि ग अर्थात् पाराध का अनुपात / १० लिया जावे । दोनों हस्तलिपियों में 'तन्नवमांश दर्श गुणं लिखा है, व्यास जिससे स्पष्ट होता है कि सूक्ष्म मान, सन्निकट मान का गुणा होता है। परन्तु यहाँ ग्रंथ में तद्दशमांशं नव गुणं लिया गया है, जो सुक्ष्म मान को, सन्निकट का बतलाता है। यह सरलतापूर्वक देखा जा सकता है कि यह गोल की घनाकार समाई के माप के संबंध में सूक्ष्मतर माप देता है, जितना की और कोई भी माप नहीं देता। (३०३) इस नियमानुसार त्रिभुजाकार स्तूप की घनाकार समाई के व्यावहारिक मान को बीजीय रूप से निरूपित करने पर अ४/५ अर्थात् १५/२० प्राप्त होता है, और सूक्ष्म मान
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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