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गणितसारसंग्रहः
मुखगुणवेधो मुखतलशेषहृतोऽत्रैव सूचिवेधः स्यात् । विपरीत वेधगुणमुखतलयुत्यवलम्बहृद्वयासः || २६३ ।।
अत्रोदेशकः
समचतुरश्रा वापी विंशतिरूर्ध्वे चतुर्दशाधाश्च । वेधो मुखे नवाधस्त्रयो भुजाः केऽत्र सूचिवेधः कः ।। २७३ ।। गोलाकार क्षेत्रस्य फलानयनसूत्रम्
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ऊपर की भुजा के दिये गये माप के साथ दी गई गहराई का गुणा करने पर परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाला गुणनफल जब ऊपरी भुजा और तली की भुजा के मापों के अंतर द्वारा भाजित किया जाता है, तब तक बिन्दु ( अर्थात् जब तली अंत से बिन्दु रूप रह जाती हो ) की दशा में इष्ट गहराई उत्पन्न होती है । बिन्दुरूप तली से ऊपर की ओर इष्ट स्थिति तक मापी गई गहराई को ऊपर की भुजा के माप द्वारा गुणित करते हैं । तब प्राप्तफल को बिन्दुरूप तली की ( यदि हो तो ) भुजा के माप तथा ऊपर से लेकर बिन्दुरूप तली तक की ) कुल गहराई के योग द्वारा भाजित करने से खात की इष्ट गहराई पर भुजा का माप उत्पन्न होता है ।। २६५ ॥
उदाहरणार्थ एक प्रश्न
I
समभुज चतुर्भुजाकार आकृति के छेदवाली एक वापिका है । ऊपरी भुजा का माप २० है, और तली में भुजा का माप १४ है । आरंभ में गहराई ९ है । यह गहराई नीचे की ओर ३ और बढ़ाई जाने पर तली की भुजा का माप क्या होगा? यदि तली अंत में बिन्दु रूप हो जाती हो, तो गहराई का माप क्या होगा ? ॥ २७३ ॥
गोलाकार क्षेत्र से वेष्टित जगह की घनाकार समाई का मान निकालने के लिये नियम
( २६३ ) इस श्लोक में वर्णित किये गये प्रश्न ये हैं (अ) उल्टाये गये स्तूप या शंकु (cone) की कुल ऊँचाई निकालना, (ब) जब किसी काटे गये स्तूप या शंकु की ऊँचाई और ऊपरी तथा नीचे के तलों का विस्तार दिया गया होता है, तब किसी इष्ट गहराई पर छेद ( section ) के विस्तार को निकालना । तुलनात्मक अध्ययन के लिये त्रिलोक प्रज्ञप्ति ( १ / १९४, ४ / १७९४ ) तथा जम्बूद्वीप प्रशति ( १, २७, २९ ) देखिये यदि वर्गाकार आधारखाले रुंडित ( काटे गये ) स्तूप में आधार की भुजा का माप 'अ' ऊपरी तल की भुजा का माप 'ब' ऊँचाई 'उ' हो तो यहाँ दिये गये नियमानुसार, कुछ स्तूप और किसी दी गई ऊँचाई उ, पर स्तूप के छेद की भुजा का
अX उ अ - ब
की ऊँचाई ऊ लेकर ऊ
=
.अ (ऊ- उ माप = ऊ
होता है । ये सूत्रशंकु के लिये भी प्रयोज्य होते हैं । स्तूप के बिन्दुरूपी भाग
को बनानेवाली छेद की भुजा का माप नियमानुसार, दूसरे सूत्र के हर ऊ में जोड़ा जाता है, क्योंकि कुछ दशाओं में स्तूप निश्चय रूप से बिन्दु में प्रहासित नहीं होता। जहाँ वह बिन्दु में प्रहासित नहीं होता वहीँ इस भुजा का माप शून्य लेना पड़ता है ।