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-८. २५३ ] खातव्यवहारः
[२५७ उत्सेधे बहुप्रकारवति सति खातफलानयनस्य च, यस्य कस्यचित् खातफलं ज्ञात्वा तत्खातफलात् अन्यक्षेत्रस्य खातफलानयनस्य च सूत्रम्वेधयुतिः स्थानहृता वेधो मुखफलगुणः स्वखातफलं । त्रिचतुर्भुजवृत्तानां फलमन्यक्षेत्रफलहृतं वेधः ।। २३३ ।।
अत्रोद्देशकः समचतुरश्रक्षेत्रे भूमिचतुर्हस्तमात्रविस्तारे। तत्रैकद्वित्रिचतुर्हस्तनिखाते कियान् हि समवेधः ।। २४३ ।। समचतुरश्राष्टादशहस्तभुजा वापिका चतुर्वेधा। वापी तज्जलपूर्णान्या नवबाहात्र को वेधः ।। २५३ ।।
यस्य कस्यचित्खातस्य ऊर्ध्वस्थितभुजासंख्यां च 'अधःस्थितभुजासंख्यां च उत्सेधप्रमाणं च ज्ञात्वा, तत्खाते इष्टोत्सेधसंख्यायाः भुजासंख्यानयनस्य, अधःसूचिवेधस्य च संख्यानयनस्य सूत्रम्
किसी खात की घनाकार समाई निकालने के लिये नियम, जबकि विभिन्न बिन्दुओं पर खात की गहराई बदलती है, अथवा जबकि घनाकार समाई समान करने के लिये दूसरे ज्ञात क्षेत्रफल के संबंध में आवश्यक खुदाई की गहराई पर खात की घनाकार समाई ज्ञात है
विभिन्न स्थानों में मापी गई गहराइयों के योग को उन स्थानों की संख्या द्वारा भाजित किया जाता है। इससे औसत गहराई प्राप्त होती है। इसे खात के ऊपरी क्षेत्रफल से गुणित करने पर त्रिभुजाकार, चतुर्भुजाकार अथवा वृत्ताकार छेद वाले क्षेत्रफल सम्बन्धी खात की घनाकार समाई उत्पन्न होती है। दिये गये खात की घनाकार समाई, जब दूसरे ज्ञात क्षेत्रफल के मान द्वारा भाजित की जाती है, तब वह गहराई प्राप्त होती है, जहाँ तक खुदाई होने पर परिणामी घनाकार समाई एक-सी हो जाती हो ॥ २३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी समभुज चतुर्भुज क्षेत्र में, जिसके द्वारा वेष्टित मैदान विस्तार में (लंबाई और चौड़ाई में) ४ हस्त माप का है, खातें चार भिन्न दशाओं में क्रमशः १, २, ३ और ४ हस्त गहरी हैं । खातों की औसत गहराई का माप क्या है ? ॥ २४ ॥
समभुज चतुर्भुज क्षेत्र जिसका छेद है, ऐसे कूप की भुजाएँ माप में १८ हस्त हैं। उसकी गहराई ४ हस्त है । इस कूप के पानी से दूसरा कूप, जिसके छेद की प्रत्येक भुजा ९ हस्त की है, पूरी तरह भरा जाता है । इस दूसरे कूप की गहराई क्या है ? ॥ २५ ॥
जब किसी दिये गये खात के संबंध में ऊपरी छेदीय क्षेत्र की भुजाओं के माप तथा निम्न छेदीय क्षेत्र की भुजाओं के माप ज्ञात हों, और जब गहराई का माप भी ज्ञात हो, तब किसी चुनी हुई गहराई पर परिणामी निम्न छेद की भुजाओं के मान को प्राप्त करने के लिये, तथा यदि तली केवल एक बिन्दु में घटकर रह जाती हो, तब खात की परिणामी गहराई को प्राप्त करने के लिये नियम
ग० सा० सं०-३३