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________________ २४४] गणितसारसंग्रहः [७.२०४ अत्रोद्देशकः स्तम्भस्रयोदशैकः पञ्चदशान्यश्चतुर्दशान्तरितः। रज्जुबैद्धा शिखरे भूमीपतिता क' आबाधे ॥ २०४ ।। ते रज्जू समसंख्ये स्यातां तद्रज्जुमानमपि कथय ॥ २०५ ॥ द्वाविंशतिरुत्सेधो' गिरेस्तथाष्टादशान्यशैलस्य । विंशतिरुभयोर्मध्ये तयोश्च शिखयोःस्थितौ साधू ।। २०६ ।। आकाशचारिणौ तौ समागतौ नगरमत्र भिक्षायै । समगतिको संजातौ तत्राबाधे कियत्संख्ये ॥ समगतिसंख्या कियती डोलाकारेऽत्र गणितज्ञ ॥ २०७३ ॥ विशतिरेकस्योन्नतिरद्रेश्च जिनास्तथान्यस्य । तन्मध्यं द्वाविंशतिरनयोरयोश्च शृङ्गयोः स्थित्वा ।। २०८३ ।। आकाशचारिणौ द्वौ तन्मध्यपुरं समायातौ। भिक्षायै समगतिको स्यातां तन्मध्यशिखरिमध्यं किम ॥ २८९१॥ विषमत्रिकोणक्षेत्ररूपेण हीनाधिकगतिमतोनरयोः समागमदिनसंख्यानयनसूत्रम् १. क आबाधे व्याकरणरूपेण अशुद्ध है, क्योंकि द्विवाचक संख्या 'के' और 'आबाधे' के मध्य कोई संधि नहीं हो सकती है। १८९ वें श्लोक की टिप्पणी से मिलान करिये । उदाहरणार्थ प्रश्न एक स्तंभ ऊँचाई में १३ हस्त है। दूसरा ऊँचाई में १५ हस्त है। इनके बीच की दूरी १४ हस्त है। इन दो स्तंभों के ऊपरी सिरों पर बँधा हुआ एक रस्सा ( रज्जु ) इस तरह नीचे लटकता है, कि वह इन दो स्तंभों के बीच की दूरी को स्पर्श करता है। स्तंभों के बीच की आधार रेखा के इस प्रकार उत्पन्न खंडों के मान क्या-क्या हैं ? रज्जु के दो लटकते हुए भाग लम्बाई में समान संख्यात्मक मान के हैं। रज्जु का माप भी बतलाओ ॥ २०४१-२०५३ ॥ किसी एक पर्वत की ऊँचाई २२ योजन है। दूसरे पर्वत की १० योजन है। उन दो पर्वतों के बीच की दूरी २० योजन है। पर्वत के शिखर पर तिष्ठे हुए दो साधु आकाश में गमन कर सकते हैं। भिक्षा के लिये वे आकाश मार्ग से नीचे आते हैं, और उन पर्वतों के बीच बसे हुए नगर में मिलते हैं। यह ज्ञात है कि वे आकाश मार्ग से समान दरियाँ तय कर आये हैं । इन दशाओं में दो पर्वतों के बीच की आधारीय रेखा के खंडों के संख्यात्मक मान क्या-क्या हैं ? हे गणितज्ञ, इस डोलाकार क्षेत्र में तय की गई समान राशियों का संख्यात्मक मान क्या है ॥ २०६-२०७१॥ एक पर्वत की ऊँचाई २० योजन है, और इसी प्रकार दूसरे पर्वत की ऊँचाई २४ योजन है। उनके बीच की दूरी २२ योजन है। दो साधु, जो अलग अलग पर्वत के शृr पर स्थित थे और आकाश में गमन कर सकते थे, उन दो पर्वतों के बीच में बसे हुए नगर में भिक्षा के लिये उतरे। वे आकाश में बराबर दूरियाँ तय करते हुए देखे गये। उस मध्य में बसे हुए नगर और पर्वतों के बीच की दूरी का माप क्या है ? ॥ २००१-२०९ ॥ विषम त्रिभुज की सीमाद्वारा निरूपित मार्ग पर असमान गति से चलने वाले दो मनुष्यों का समागम होने के लिये इष्ट दिनों की संख्या का मान निकालने के लिए नियम
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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