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-७. २०३३ ]
डोलाकारक्षेत्रस्तम्भद्वितयोर्ध्वसंख्ये वा । शिखरिद्वयोर्ध्वसंख्ये परिकल्प्य भुजद्वयं त्रिकोणस्य ॥। २०१३ ॥ तद्दोर्द्वितयान्तरगत भूसंख्यायास्तदाबाधे ।
आनीय प्राग्वत्ते व्युत्क्रमतः स्थाप्य ते कोटी ।। २०२३ ॥
स्यातांतस्मिन्नायतचतुरश्रक्षेत्रयोश्च तद्दोर्भ्याम् ।
कोटिभ्यां कर्णौ द्वौ प्राग्वत्स्यातां समानसंख्यौ तौ ॥। २०३३ ॥
क्षेत्रगणितव्यवहारः
ढोल तथा उसके दो लंबरूप अवलंबों द्वारा निरूपित आकृति के संबंध में, दो स्तंभों की अथवा दो पर्वतों की ऊँचाइयों के मापों को त्रिभुज की दो भुजाओं के माप मान लेते हैं । तब, दिये गये स्तंभों अथवा पर्वतों की बीच की आधार रेखा के मान के तुल्य उन दो भुजाओं के बीच की आधार रेखा के संबंध में, शीर्ष से आधार पर गिराये गये लंब से उत्पन्न आबाधाओं के मान पहिले दिये गये नियमानुसार प्राप्त करते हैं । यदि इन आबाधाओं ( खंडों) के मानों को विलोम क्रम में लिखा जावे, तो वे इष्ट क्रिया में दो आयतों की दो लंब भुजाओं के मान बन जाते हैं । अब, पहिले दिये गये नियमानुसार दो आयतों के कर्णौ के मानों को उपर्युक्त त्रिभुज की दो भुजाओं ( जो यहाँ आयत की दो क्षैतिज भुजाएँ ली गई हैं ) तथा उन दो लंब भुजाओं की सहायता से प्राप्त करते हैं । ये कर्ण समान संख्यात्मक मान के होते हैं ॥ २०१३ - २०३३ ॥
( २०१३ - २०३३) इस नियम में वर्णित चतुर्भुजों में, मानलो, लंब भुजाएँ अ, ब द्वारा निरूपित हैं, आधार स है; स, स उसके खंड ( आबाधायें ) हैं, और रज्जु ( रस्से) के प्रत्येक समान भाग की लंबाई है ।
अब, अ' + स ् = ब े + स ् ।
.'. ( स 2 + स, ) (स = स ) = अ - ब े; और स+सस; अ अरे - बर
+ स
स
क =
स -
ल
स
अ - बर
.. स २ =
स २
२
ओर स१ = ये मान, अ और ब भुजाओंवाले त्रिभुज के 'स' माप वाले आधार के खंडों के हैं। आधार के खंड शीर्ष से लंब गिराने से उत्पन्न हुए हैं। नियम में यही कथित है। गाथा ४९ का नियम भी देखिये । ( २१०३ ) यहाँ बतलाया हुआ पथ समकोण त्रिभुज की भुजाओं में से होकर जाता है । इस नियम में दिये गये सूत्र का बीजीय निरूपण यह है
[ २४३
ल
स
स
ब
बर + अर
अXद, जहाँ क कर्णपथ से जाने पर व्यतीत हुए दिनों की संख्या है, अ और ब
क्रमशः दो मनुष्यों की गतियाँ हैं, और द उत्तर दिशा से जानेपर व्यतीत हुए दिनों की संख्या है । इस में 'दत्त व्यास पर आधारित निम्नलिखित समीकरण से यह स्पष्ट है
प्रश्न
बरे करे = दर ब± + (फ+ द ) श्Xअर