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________________ गणित सारसंग्रहः अत्रोद्देशकः षड्योजनोर्ध्वशिखरिणि यतीश्वरौ तिष्ठतस्तत्र । एकोऽचिर्ययागात्तत्राप्याकाशचार्यपरः ।। १९९३ ॥ श्रुतिवशमुत्पत्य पुरं गिरिशिखरान्मूलमवरुह्यान्यः । समगतिक संजातौ नगरव्यासः किमुत्पतितम् || २००३ ॥ २४२ ] डोलाकारक्षेत्रे स्तम्भद्वयस्य वा गिरिद्वयस्य वा उत्सेधपरिमाणसंख्यामेव आयतचतुरश्र - भुजद्वयं क्षेत्रद्वये परिकल्प्य तद्द्विरिद्वयान्तरभूम्यां वा तत्स्तम्भद्वयान्तरभूम्यां वा आबाधाद्वयं परिकल्प्य तदाबाधाद्वयं व्युत्क्रमेण निक्षिप्य तव्युत्क्रमं न्यस्ताबाधाद्वयमेव आयत चतुरश्रक्षेत्रद्वये कोटिद्वयं परिकल्प्य तत्कर्णद्वयस्य समानसंख्यानयनसूत्रम् - उदाहरणार्थ प्रश्न ६ योजन ऊँचाई वाले किसी पर्वत पर २ यतीश्वर तिष्ठे थे । उनमें से एक ने पैदल गमन किया । दूसरे आकाश में गमन कर सकते थे। ये दूसरे यतीश्वर ऊपर की ओर उड़े, और तब शहर में कर्ण मार्ग से उतरे । प्रथम यतीश्वर शिखर से पर्वत के मूल तक सीधे नीचे की ओर उदग्र दिशा में उतरे, और पैदल शहर की ओर चले । यह ज्ञात हुआ कि दोनों ने समान दूरियाँ तय कीं । पर्वत के मूल से शहर तक की दूरी क्या है, और ऊपरी उड़ान की ऊँचाई कितनी है ? ॥ १९९३ - २००३ ॥ [ ७. १९९२ लटकन ( डोल ) और उसके दो भूमि पर आधारित लंबरूप अवलंबों द्वारा निरूपित क्षेत्र में, दो स्तंभों अथवा दो पर्वत शिखरों की ऊँचाइयों के माप दो आयत चतुरश्र क्षेत्रों की क्षैतिज ( क्षितिज के समानान्तर ) भुजाओं के माप मान लिये जाते हैं । तब इन ज्ञात क्षैतिज भुजाओं की सहायता से, और ( दशानुसार) दो पर्वत अथवा दो स्तंभ के बीच की आधार रेखा के संबंध में लंब के मिलन बिन्दु द्वारा उत्पन्न आबाधाओं ( खंडों) के मानों को प्राप्त करते हैं । इन दो आबाधाओं को विलोम क्रम में लिखते हैं । इस प्रकार विलोम क्रम में लिखे गये ( दो आबाधाओं के ) मानों की दो आयताकार चतुर्भुज क्षेत्रों की दो लंब भुजाओं के माप मान लेते हैं । ( ऐसी दशा में ) इन दो आयतों के कर्णों के समान संख्यात्मक मान को प्राप्त करने के लिये नियम ( १९९३ - २००३ ) आकृति में यदि पर्वत की ऊँचाई 'अ' द्वारा निरूपित है, शहर से पर्वत के मूल की दूरी 'ब' है, और कर्ण मार्ग की लम्बाई 'स' है, तो गाथा १९८२ के नियम की पृष्टभूमि में की गई कल्पना के अनुसार 'अ' भुजा आ बा की 2 / 3 है । इसलिये ऊर्ध्व दिशा की उड़ान दा बा अर्थात् अ है. ..(१) चूँकि दो साधुओं की उड़ानें बराबर है, . : स + अ =अ+ बैं; . ( २ ) .. स = अ + ब.. " स = अ + + अ ब, परन्तु स = 8 अ + ब े; .'. अ ब = २ अ े; अ ... ब= २अ.. ..(३) दिये गये नियम में ये ही तीन सूत्र ( १ ), ( २ ) और ( ३ ) वर्णित हैं । बा ब स आ
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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