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-७. १९८३] क्षेत्रगणितन्यवहारः
[२४१ ज्येष्ठस्तम्भसंख्यां च अल्पस्तम्भसंख्यां च ज्ञात्वा उभयस्तम्भान्तरभूमिसंख्यां ज्ञात्वा तज्ज्येष्ठसंख्ये भग्ने सति ज्येष्ठस्तम्भाग्रे अल्पस्तम्भाग्रं स्पृशति सति ज्येष्ठस्तम्भस्य भग्नसंख्यानयनस्य स्थितशेषसंख्यानयनस्य च सूत्रम्ज्येष्ठस्तम्भस्य कृतेर्हस्वावनिवर्गयतिमपोह्याधम । स्तम्भविशेषेण हृतं लब्धं भग्नोन्नतिर्भवति ॥ १९६३ ॥
अत्रोद्देशकः स्तम्भः पञ्चोच्छायः परस्त्रयोविंशतिस्तथा ज्येष्ठः । मध्यं द्वादश भग्नज्येष्ठाग्रं पतितमितराग्रे ॥ १९७३ ॥
आयतचतुरश्रक्षेत्रकोटिसंख्यायास्तृतीयांशद्वयं पर्वतोत्सेधं परिकल्प्य तत्पर्वतोत्सेधसंख्यायाः सकाशात् तदायतचतुरश्रक्षेत्रस्य भुजसंख्यानयनस्य कर्णसंख्यानयनस्य च सूत्रम्गिर्युत्सेधो द्विगुणो गिरिपुरमध्यक्षितिर्गिरेरर्धम् ।। गगने तत्रोत्पतितं गियर्धव्याससंयुतिः कर्णः ।। १९८३ ।।
ऊँचाई में बड़े (ज्येष्ठ ) स्तंभ की ऊँचाई का संख्यात्मक मान तथा ऊँचाई में छोटे ( अल्प ) स्तंभ की ऊँचाई का संख्यात्मक मान ज्ञात है। इन दो स्तंभों के बीच की दूरी का संख्यात्मक मान भी ज्ञात है। ज्येष्ठ स्तंभ भग्न होकर इस प्रकार गिरता है, कि उसका ऊपरी अन अल्प स्तंभ के ऊपरी अग्र पर अवलम्बित होता है, और भग्न भाग का निम्न भाग, शेष भाग के ऊपरी भाग पर स्थित रहता है । इस दशा में ज्येष्ठ स्तंभ के भन्न भाग की लम्बाई का संख्यात्मक मान तथा उसी ज्येष्ठ स्तंभ के शेष भाग की ऊँचाई के संख्यात्मक मान को प्राप्त करने के लिये नियम
ज्येष्ठ स्तंभ के संख्यात्मक माप के वर्ग में से, अल्प स्तंभ के माप के वर्ग और आधार के माप के वर्ग के योग को घटाते हैं । परिणामी शेष की अई राशि को दो स्तंभों के मापों के अंतर द्वारा भाजित करते हैं। प्राप्त भजनफल भन्न स्तंभ के उन्नत भाग की ऊँचाई होता है। ॥१९६॥
उदाहरणार्थे प्रश्न ___एक स्तंभ ऊँचाई में ५ हस्त है, उसी प्रकार दूसरे ज्येष्ठ स्तंभ ऊँचाई में २३ हस्त है। उनके बीच की दूरी १२ हस्त है। भग्न ज्येष्ठ स्तंभ का उपरी अग्र अल्प स्तंभ के ऊपरी अन पर गिरता है। भन्न ज्येष्ठ स्तंभ के उन्नत भाग की ऊँचाई निकालो ॥ १९७२ ॥
आयत क्षेत्र की ऊर्ध्वाधर (लंब रूप) भुजा के संख्यात्मक मान की दो तिहाई राशि को पर्वत की ऊँचाई मानकर, उस पर्वत की ऊँचाई की सहायता से उक्त आयत के कर्ण और क्षैतिज भुजा (आधार) के संख्यात्मक मानों को निकालने के लिये नियम
पर्वत की दुगुनी ऊँचाई, पर्वत के मूल से वहाँ के शहर के बीच की दूरी का माप होती है। पर्वत की आधी ऊँचाई गगन में ऊपर की ओर की उड़ान की दूरी ( उड्डयन ) का माप है। पर्वत की आधी ऊँचाई में, (पर्वत के मूल से ) शहर की दूरी का माप जोड़ने से कर्ण प्राप्त होता है ॥ १९४६॥
(१९६३) यदि ज्येष्ठ स्तम्भ की ऊँचाई अ और अल्प स्तम्भ की ब द्वारा निरूपित हो; उनके बीच की दूरी स हो, और अ, भन्न स्तम्भ के उन्नत भाग की ऊँचाई हो, तो नियमानुसार,
. अ-(ब+स),
अ.: (अ-ब) ग० सा० सं०-३१
अ