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________________ २४० ] गणितसारसंग्रहः [ ७. १९०५स्तम्भस्योन्नतप्रमाणसंख्यां ज्ञात्वा तस्मिन् स्तम्भे येनकेनचित्कारणेन भग्ने पतिते सति तत्स्तम्भारमूलयोर्मध्ये स्थितौ भूसंख्यां ज्ञात्वा तत्स्तम्भमूलादारभ्य स्थितपरिमाणसंख्यानयनस्य सूत्रम्निर्गमवर्गान्तरमितिवर्गविशेषस्य यद्भवेदर्धम् । निर्गमनेन विभक्तं तावस्थित्वाथ भग्नः स्यात् ।। १९०३ ॥ अत्रोद्देशकः स्तम्भस्य पञ्चविंशतिरुच्छ्रायः कश्चिदन्तरे भग्नः । स्तम्भारमूलमध्ये पश्च स गत्वा क्रियान् भग्नः ॥ १९१३ ।। वेणूच्छाये हस्ताः सप्तकृतिः कश्चिदन्तरे भग्नः । भूमिश्च सैकविंशतिरस्य स गत्वा कियान भग्नः ।। १९२३ ।। वृक्षोच्छायो विंशतिरग्रस्थः कोऽपि तत्फलं पुरुषः । कर्णाकृत्या व्यक्षिपदथ तरुमूलस्थितः पुरुषः ॥ १९३३ ॥ तस्य फलस्याभिमुखं प्रतिभुजरूपेण गत्वा च । फलमग्रहीच तत्फलनरयोर्गतियोगसंख्यैव ॥ १९४३ ।। पञ्चाशदभूत्तत्फलगतिरूपा कर्णसंख्या का । तवृक्षमूलगतनरगतिरूपा प्रतिभुजापि कियती स्यात् ॥ १९५३ ॥ का संख्यात्मक मान निकालने के लिये यह नियम है संपूर्ण ऊँचाई के वर्ग और ज्ञात आधारीय ( basal ) दूरी के वर्ग के अंतर की अर्द्ध राशि जब संपूर्ण ऊँचाई द्वारा भाजित होती है, तब शेष उन्नत भाग का माप उत्पन्न होता है। जो अब संपूर्ण ऊँचाई का शेष बचता है वह भग्न भाग का माप होता है ।। १९०१ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न स्तंभ की ऊँचाई २५ हस्त है । वह मूल और अन के बीच कहीं टूटा है। फर्श पर गिरे हुए अन ( ऊपरी भाग ) और स्तंभ के मूल के बीच की दूरी ५ हस्त है। बताओ कि टूटने का स्थान बिन्दु मूल से कितनी दूर है ? ॥ १९१ ।। ( उगने वाले ) बाँस की ऊँचाई का माप ४९ हस्त है । वह मूल और अन के बीच कहीं भग्न हुआ है। भाधारीय दूरी २१ हस्त है। वह मूल से कितनी दूरी पर टूटा है ।। १९२१॥ किसी वृक्ष की ऊँचाई २० हस्त है। कोई मनुष्य उसके ऊपरी भाग (चोटी) पर बैठकर कर्णरूप पथ में फल को नीचे फेंकता है (अर्थात् वह फल सरल रेखा में गिरकर, समकोण त्रिभुज का कर्ण बनाता है )। तब दूसरा मनुष्य जो वृक्ष के नीचे बैठा हुआ है, फल तक सरल रेखा में पहुँचता है (यह पथ त्रिभुज की दूरी भुजा का निर्माण करता है), और उस फल को ले लेता है। फल तथा इस मनुष्य द्वारा तय की गई दूरियों का योग ५० हस्त है। फल द्वारा तय किये गये पथ द्वारा निरूपित कर्ण का संख्यात्मक मान क्या है ? मनुष्य द्वारा तय किये गये पथ द्वारा निरूपित अन्य भुजा का माप क्या हो सकता है ? ॥ १९३१-१९५३ ।।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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