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गणितसारसंग्रह
गणना शैली का द्योतक है । इनके ग्रंथ आर्यभटीय से ज्ञात होता है कि इन्होने सब ग्रंथों का सार
ग्रहणकर अपने समय के ज्योतिष ज्ञान को बढ़ाने में अभूतपूर्व कार्य किया । इन्होंने सूर्य तारों को स्थिर बतलाया, पृथ्वी की परिधि निश्चित की ओर सूर्य, चंद्र ग्रहण के कारणों का वैज्ञानिक ढंग से स्पष्टीकरण किया। इस ग्रंथ के गणित पाद अध्याय में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के बहुत से कठिन प्रश्नों को ३० श्लोकों में भर दिया गया है। उसमें उन्होंने क्षेत्रफल, घनफल, त्रिकोणमिति, छाया सम्बन्धी प्रश्न, वृत्त की जीवा और शरी का सम्बन्ध, दो राशियों का गुणनफल और अन्तर जान कर राशियों को अलग करने की रीति, वर्ग समीकरण का एक उदाहरण, त्रैराशिक, मित्रों के गुणन भाग की रीति, कुछ कठिन समीकरणों को हल करने के नियम, दो ग्रहों का युतिकाल जानने का नियम, और कुहक नियमादि का कथन किया है। ज्या का वाचक शब्द साइन, ज्या की संस्कृत पर्याय 'शिंजनी' के रूपांतर का अपभ्रंश है।
सातवीं सदी में गणित का प्रशंसनीय विकास ब्रह्मगुप्त द्वारा हुआ। २१ अध्याय के ग्रंथ ब्राह्मस्फुट के गणिताध्याय में इन्होंने विशेषतः व्यस्त त्रैराशिक, भाण्ड प्रतिभाण्ड, मिश्रक व्यवहार, ब्याज, श्रेणियों, छाया माप आदि में अंकगणित का प्रयोग किया, और कुट्टक गणित में ऋगात्मक संख्याओं के लिये नियम निकाले, अनिर्वृत (indeterminate) समीकरणों पर कार्य किया, और सूर्य घड़ी में त्रिकोणमिति का प्रयोग किया। अ + १ =य, ( जिसमें क्ष और य अशात है) जैसे अनिर्धृत समीकरणों का विवेचन भी ग्रंथकार ने किया। इस समीकरण का नाम भूल से पेलियन (Peleian) समीकरण पड़ गया है । यह द्विघातीय वर्ग रूपों और वर्ग क्षेत्रों के अंकगणितीय सिद्धान्तों का मूलभूत आधार है । इनके सिवाय क्षेत्र व्यवहार, वृत्तक्षेत्र गणित, खात व्यवहार, चिति व्यवहार, ऋकचिका व्यवहार, राशि, छाया व्यवहार आदि का विवेचन भी किया गया है ।
* इस सदी में मुसलमानों की संस्कृति के सहसा उत्थान तथा १२ वीं सदी में उसके सहसा पतन के सम्बन्ध में इतिहास बड़ा रोचक है । सन् ६२२ में पैगम्बर मुहम्मद साहिब के अनुयायी अपनी यात्राओं पर हरे झंडे के नीचे संगठित होकर चल पड़े। सन् ६३५ में दमस्क (Damascus) पर विजय प्राप्त कर सन् ६३७ में जेरुसलम ( यरूशलम ) जीता गया । चार वर्ष पश्चात् सिकन्दरिया का पुस्तकालय नष्ट किया गया। मिस्र को अधिकार में लेकर ६४२ ईस्वी में फारस पर आधिपत्य जमाया गया। १०० वर्ष पश्चात् विजेतागण ७११ ईस्वी में स्पेन में पहुँचे, जहाँ उन्होंने सभ्यता को ८ शताब्दियों तक बढ़ाया। इसी काल में वे भारत की अंकणित तथा प्रीस की रेखागणित को यूरोप ले आये पूर्व में अब्बासीद
Abbasid ) खलीफाओं के आधिपत्य में बगदाद पूर्व की सभ्यता का केन्द्र ७५० से १२५८ ईस्वी तक रहा, और स्पेन में कारडोवा ( Cordova ) पश्चिम की बौद्धिक रानी ( the intellectual queen of the west) बना। इस अन्तराल में विज्ञान के आदान-प्रदान के सम्बन्ध में Encyclopaedia Britannica में निम्नलिखित उल्लेख है - "The muslim civilization, particularly as represented at Baghdad, e 800. e 1000, developed a type of mathematics which combined the characteristic features of the Greek and Hindu treatment of the science. Eastern faith in astrology and skill in number met with Western faith in philosophy and skill in geometry, and the Baghdad scholars, absorbing each, produced text books In general algebra, elementary number, astronomy and trigonometry which, through the efforts of Latin translators, gave new life to mathematics in Europe"-vol. 15, p 84, (1929)