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________________ -७.१४८] क्षेत्रगणितव्यवहारः [२२३ अत्रोद्देशकः कस्य हि समचतुरश्रक्षेत्रस्य फलं चतुष्षष्टिः । फलमायतस्य सूक्ष्मं षष्टिः के वात्र कोटिभुजे ॥ १४७ ।। ___इष्टद्विसमचतुरश्रक्षेत्रस्य सूक्ष्मफलसंख्या ज्ञात्वा, इष्टसंख्यां गुणकं परिकल्प्य, इष्टसंख्याकबीजाभ्यां जन्यायतचतुरश्रक्षेत्रं परिकल्प्य, तदिष्टद्विसमचतुरश्रक्षेत्रफलवदिष्टद्विसमचतुरश्रानयनसूत्रम्तद्धनगुणितेष्टकृतिजन्यधनोना भुजाहृता मुखं कोटिः। द्विगुणा समुखा भूर्दोलम्बः कर्णौ भुजे तदिष्टहृताः ॥ १४८ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ६४ क्षेत्रफल वाली वर्गाकार आकृति वास्तव में कौन सी है ? आयत क्षेत्र के क्षेत्रफल का शुद्ध मान ६० है। बतलाओ कि यहाँ लंब भुजा और आधार के मान क्या क्या हैं ? ॥१४७॥ दो बराबर भुजाओं वाले ऐसे चतुर्भुज क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये नियम, जिसे बीजों की सहायता से आयत क्षेत्र को प्राप्त करने पर और साथ ही किसी दी हुई संख्या को इष्ट गुणकार की तरह उपयोग में लाकर प्राप्त करते हैं, तथा जब (दो बराबर भुजाओंवाले) ऐसे चतुर्भुज क्षेत्र के क्षेत्रफल के बराबर ज्ञात सूक्ष्म क्षेत्रफल वाले चतुर्भुज का क्षेत्रफल होता है दिये गये गुणकार का वर्ग दिये गये क्षेत्रफल द्वारा गुणित किया जाता है। परिणामी गुणनफल, दिये गये बीजों से प्राप्त आयत के क्षेत्रफल द्वारा हासित किया जाता है। शेषफल जब इस आयत के आधार द्वारा भाजित किया जाता है, तब ऊपरी भुजा का माप उत्पन्न होता है। प्राप्त आयत की लंब भुजा का मान, जब २ द्वारा गुणित होकर (पहिले ही) प्राप्त ऊपरी भुजा के मान में जोड़ा जाता है, तब आधार का मान उत्पन्न होता है। इस आयत क्षेत्र के आधार का मान ऊपरी भुजा के अंतरों से आधार पर गिराये गये लंब के समान होता है, तथा व्युत्पादित आयत क्षेत्र के कर्णों का मान भुजाओं के मान के समान होता है। इस प्रकार प्राप्त दो समान भुजाओं वाले चतुर्भुज के ये तत्त्व दिये गये गुणकार द्वारा भाजित किये जाते हैं, ताकि दो समान भुजाओं वाला इष्ट चतुर्भुज प्राप्त हो ॥१४॥ (१४८) यहाँ दिये गये क्षेत्रफल और दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज की रचना संबंधी प्रश्न का विवेचन किया गया है । इस हेतु मन से कोई संख्या चुनी जाती है। दो बीजों का एक कुलक (set) भी दिया गया रहता है। इस नियम में वर्णित रीति दूसरी गाथा में दिये गये प्रश्न में प्रयुक्त करने पर स्पष्ट हो जावेगी। उल्लिखित बीज यहाँ २ और ३हैं। दिया गया क्षेत्रफल ७ है, तथा मन से चुनी हुई संख्या ३ है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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