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गणित सारसंग्रहः
अत्रोद्देशकः
स्वान्तःपुरे नरेन्द्रः प्रासादतले निजाङ्गनामध्ये । दिव्यं स रत्नकम्बलमपीपतत्तच्च समवृत्तम् ॥ १४३ ॥ ताभिर्देवीभिर्धृतमेभिर्भुजयोश्च मुष्टिभिर्लब्धम् । पञ्चदशैकस्याः स्युः कति वनिताः कोऽत्र विष्कम्भः ॥ १४४ ॥ समचतुरश्रभुजाः के समत्रिबाहौ भुजाचा आयतचतुरश्रस्य हि तत्कोटिभुजौ सखे कथय ॥ १४५ ॥
२२२ ]
क्षेत्रफलसंख्यां ज्ञात्वा समचतुरश्रक्षेत्रानयनस्य चायतचतुरश्रक्षेत्रानयनस्य च सूत्रम् - सूक्ष्मगणितस्य मूलं समचतुरश्रस्य बाहुरिष्टहृतम् । धनमिष्टफले स्यातामायतचतुरश्र कोटिभुजौ ॥ १४६ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी राजा ने अपने अंतःपुर के प्रासाद में अपनी रानियों के बीच में ऊपर से फर्श पर समवृत्त आकार वाला उत्कृष्ट रत्नकंबल नीचे गिराया। वह उन देवियों द्वारा हाथ में ग्रहण कर लिया गया । उनमें से प्रत्येक ने अपनी दोनों भुजाओं की मुट्टियों में पंद्रह पंद्रह दंड क्षेत्रफल का कंबल ग्रहण कर रखा । यहाँ बतलाओ कि इस नरेन्द्र की वनितायें कितनी हैं, और वृत्ताकार कंबल का व्यास ( विष्कंभ ) कितना है ? यदि यह कंबल वर्गाकार हो, तो इसकी प्रत्येक भुजा कितने माप की होगी ? यदि वह समत्रिभुजाकार हो तो उसकी भुजा कितनी होगी ? हे मित्र, मुझे बतलाओ कि यदि कंबल आयताकार हो, तो उसकी लंब भुजा और आधार का माप क्या होगा ? ॥ १४३ - १४५॥ वर्गाकार आकृति अथवा आयताकार आकृति प्राप्त करने के लिये नियम, जबकि आकृति के क्षेत्रफल का संख्यात्मक मान ज्ञात हो
।
दिये गये क्षेत्रफल के शुद्ध माप का वर्गमूल इष्ट वर्गाकार आकृति की भुजा का माप होता है। दिये गये क्षेत्रफल को मन से चुनी हुई ( केवल क्षेत्रफल के छोड़कर ) कोई भी राशि द्वारा भाजित करने पर परिणामी भजनफल और यह मन से आयत क्षेत्र के संबंध में क्रमशः आधार और लंब भुजा की रचना करती हैं ॥ १४६ ॥
आयत की दशा में,
अर
अ
=
"
क X म
वृत्त की दशा में, कXन
कXम अ वर्ग की दशा में, =- ; क X न ४अ
_Xम_अ / 2 समत्रिभुज की दशा में, कXन = ३अ अXब
क X म
लिया गया जहाँ ब =
=
अ २
1
,
Xन २ ( अ + ब) अध्याय की ७ वीं गाथा में दिये गये नियम के अनुसार समभुज त्रिभुज के क्षेत्रफल का व्यावहारिक मान यहाँ उपयोग में लाया गया है । अन्यथा, इस नियम में दिया गया सूत्र ठीक सिद्ध नहीं होता ।
(१४३ - १४५) इस प्रश्न में मुट्ठीभर का अर्थ चार अंगुल प्रमाण होता है ।
वर्गमूल को चुनी हुई राशि
जहाँ T =
[ ७. १४३
परिधि
व्यास
;