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________________ क्षेत्र गणितव्यवहारः [ २२१ एकद्वयादिगणनातीतसंख्यासु इष्टसंख्यामिष्टवस्तुनो भागसंख्यां परिकल्प्य तदिष्टवस्तुभागसंख्यायाः सकाशात् समचतुरश्रक्षेत्रानयनस्य च समवृत्तक्षेत्रानयनस्य च समत्रिभुजक्षेत्रानयनस्य चायतचतुरश्रक्षेत्रानयनस्य च सूत्रम् - स्वसमीकृता वधृतिहृतधनं चतुर्न्न हि वृत्तसमचतुरश्रव्यासः । गुणितं त्रिभुजायत चतुरश्रभुजार्धमपि कोटिः ।। १४२ ।। -७. १४२ ] वर्ग, अथवा समवृत्त क्षेत्र, अथवा समत्रिभुज क्षेत्र, अथवा आयत को इनमें से किसी उपयुक्त आकृति के अनुपाती भाग के संख्यात्मक मान की सहायता से प्राप्त करने के लिये नियम, जब कि १, २ आदि से प्रारम्भ होने वाली प्राकृत संख्याओं में से कोई मन से चुनी हुई संख्या द्वारा उस दी गई उपर्युक्त आकृति के अनुपाती भाग के संख्यात्मक मान को उत्पन्न कराया जाता है ( अनुपाती भाग के ) क्षेत्रफल ( का दिया गया माप हस्त में ) लिए गए ( समुचित रूप से ) अनुरूपित (similarised ) माप द्वारा भाजित किया जाता है । इस प्रकार प्राप्त भजनफल यदि ४ के द्वारा गुणित किया जाय, तो वर्ग तथा वृत्त की भी चौड़ाई का माप उत्पन्न होता है। वही भजनफल, यदि ६ द्वारा गुणित किया जाय, तो समत्रिभुज तथा आयत क्षेत्र के आधार का माप भी उत्पन्न होता है । इसकी अर्द्धराशि आयत क्षेत्र की लंब भुजा का माप होती है ॥ १४२ ॥ (१४२) इस नियम के अन्तर्गत दिये गये प्रश्नों के प्रकार में, वृत्त, या वर्ग, या समद्विबाहु त्रिभुज, या आयत मन चाहे समान भागों में विभाजित किया जाता है । प्रत्येक भाग, एक ओर परिमिति के किसी विशिष्ट भाग द्वारा सीमित होता है। जो अनुपात परिमिति के उस विशिष्ट भाग और पूरी परिमिति में होता है वही अनुपात उस सीमित भाग और आकृति के पूर्ण क्षेत्रफल में रहना चाहिए | वृत्त के संबंध में प्रत्येक खंड, द्वैत्रिज्य ( sector ) होता है; वर्गाकार आकृति होने पर और आयताकार आकृति होने पर वह भाग आयताकार होता तथा समत्रिभुज आकृति होने पर वह त्रिभुज होता है । प्रत्येक भाग का क्षेत्रफल और मूल परिमिति की लम्बाई दोनों दत्त महत्ता की होती हैं । यह गाथा, वृत्त के व्यास वर्ग की भुजाओं, अथवा समत्रिभुज आयत की भुजाओं का माप निकालने के लिये नियम का कथन करती है । यदि प्रत्येक भाग का क्षेत्रफल 'म' हो और संपूर्ण परिमिति की लम्बाई का कोई भाग 'न' हो तो नियम में दिये गये सूत्र ये हैं या म - X ४ = वृत्त का व्यास, अथवा वर्ग की भुजा; न म और · X ६ = समत्रिभुज या आयत की भुजा; न और न न X६ का अर्द्धभाग = आयत की लँब भुजा की लम्बाई । अगले पृष्ठ पर दिये गये समीकारों से मूल आधार स्पष्ट हो जावेगा, जहाँ प्रत्येक आकृति के विभाजित खंडों की संख्या 'क' है । वृत्त की त्रिज्या अथवा अन्य आकृति संबंधी भुजा 'अ' है, और आयत की लंब भुजा 'ब' है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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