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________________ २२० ] गणितसारसंग्रहः अत्रोद्देशकः द्विसमत्रिभुजक्षेत्रद्वयं तयोः क्षेत्रयोः समं गणितम् । रज्जू समेतयोः स्यात् को बाहुः का भवेद्भूमिः ॥ १३८ ॥ द्विसमत्रिभुजक्षेत्रे प्रथमस्य धनं द्विसंगुणितम् । रज्जुः समा द्वयोरपि को बाहुः का भवेद्भूमिः ॥ १३९ ॥ द्विसमत्रिभुजक्षेत्रे द्वे रज्जुद्विगुणिता द्वितीयस्य । गणिते द्वयोः समाने को बाहुः का भवेद्भूमिः ॥ १४० ॥ द्विसमत्रिभुजक्षेत्रे प्रथमस्य धनं द्विसंगुणितम् । द्विगुणा द्वितीयरज्जुः को बाहुः का भवेद्भूमिः ॥ १४१ ॥ उदाहरणार्थ दो समद्विबाहु त्रिभुज हैं। उनका क्षेत्रफळ एक सा है। उनकी परिमितियाँ भी बराबर हैं । भुजाओं और आधारों के मान क्या क्या हैं ? ।। १३८ ॥ दो समत्रिबाहु त्रिभुज हैं । पहिले का क्षेत्रफल दूसरे के क्षेत्रफल से दुगुना है। उन दोनों की परिमितियाँ एक सी हैं । भुजाओं और आधारों के मान क्या क्या हैं ? ॥ १३९ ॥ दो समद्विबाहु त्रिभुज हैं। दूसरे त्रिभुज की परिमिति पहिले त्रिभुज की परिमिति से दुगुनी है । उन दो त्रिभुजों के क्षेत्रफल बराबर हैं। भुजाओं और आधारों के माप क्या क्या हैं ? ॥ १४० ॥ दो समद्विबाहु त्रिभुज दिये गये हैं । प्रथम त्रिभुज का क्षेत्रफल दूसरे के क्षेत्रफल से दुगुना है, और दूसरे की परिमिति पहिले की परिमिति से भुजाओं और आधारों के माप क्या क्या हैं ? ॥ १४१ ॥ दुगुनी है । इष्ट तत्वों को प्राप्त कर सकते हैं । इस अध्याय की १०८ वीं गाथा के निकाली गई भुजाओं और ऊँचाइयों के मापों को जब क्रमशः परिमितियों की वाली राशियों अ और ब द्वारा गुणित करते हैं, तब दो समद्विबाहु त्रिभुजों की इष्ट के माप प्राप्त होते हैं । वे निम्नलिखित हैं ( १ ) बराबर भुजा = अX २ २बस {(2) + (- 1)' } द अ ६ब २ स स आधार = अ x २x२x XX(11) अनुसार, इन बीजों से निष्पत्ति में पाई जाने भुजाओं और ऊँचाइयों स ******* ******* ऊँचाई = अX {G)-GT-)} ४ब स अ द + १)' + (-<)'} *} अद ( २ ) बराबर भुवा= ब× {( आधार = ब×२×२× (भरद + १ ) x (+१) (२) बस द [ ७.१३८ ...... ....... ****** ४ब स ४२ स ऊँचाई ब zak =«× { (x2 + 1)` - (M2 7-2)" ' १ * } ......! द अब इन अर्हाओं (मानों ) से सरलतापूर्वक सिद्ध किया जा सकता है कि परिमितियों की निष्पत्ति अब और क्षेत्रफलों की निष्पत्ति स: द है, जैसा कि आरम्भ में ले लिया गया था ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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