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गणितसारसंग्रह
मोहेनजो-दड़ो के लेखों तथा मुहरों को पूर्ण रूप से पढ़ा नहीं जा सका है। उनमें कई ऐसे चिह्न हैं, जो सम्भवतः बड़ी संख्याओं को दर्शाने के लिये अंकित किये गये होंगे, पर उनके वास्तविक मान का पता पाने का कोई उपाय नहीं दिखाई देता । वेदों में भी सभ्यता की उच्चावस्था स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । 'ब्राह्मण साहित्य' ( प्रायः २००० - ००० पू० ) में धार्मिक और दार्शनिक तत्व तो हैं ही, इनके अतिरिक्त उसमें अंकगणित, रेखागणित, बीजगणित और ज्योतिर्विज्ञान की झलक भी दिखाई देती है । व्याकरण तथा स्वर विद्या सम्बन्धी खोजों से प्रतीत होता है कि ब्राह्मी लिपि, ईसा से पूर्व परिपूर्ण की गई होगी, और सम्भवतः उसके पहिले ब्राह्मी संख्याओं का आविष्कार हुआ होगा । ब्राह्मण साहित्य काल में बीजगणित मुख्यतः रैखिकीय थी । किसी दिये गये वर्ग को दी गई भुजा वाले आयत में बदलने की रैखिकीय विधि जो शुल्ब ( प्रायः ८००-५०० ई० पू० ) में वर्णित की गई है, एक अज्ञात वाले एक घातीय समीकार को हल करने के समान है । यथा, अय = सर, जहाँ य अज्ञात पद है । जब दिये गये क्षेत्र को किसी दूसरे अधिक या कम क्षेत्रफल वाले क्षेत्र में बदलना होता था, तब उस क्रिया में वर्ग समीकरण का उपयोग होता था । वैदिक आहुतियों की सबसे महत्वपूर्ण महावेदी, समद्विबाहु सम चतुर्भुज ( trapezium) के आकार की थी, जिसका आधार ३०, सामने की भुजा २४ और ऊँचाई (लम्ब) ३६ एकक ( units ) थी। वेदी के क्षेत्र को म एकक से बढ़ाने के लिये अज्ञात भुजा क्ष मानने पर य का निम्नलिखित मान प्राप्त होता है :
या
( २४ य + ३० य ३६ य X = ३६x. २ ९७२ य े = ९७२ + म, म ९७२
या
= ± १+
1
यदि म को ९७२ (न - १ ) रखा जाय ताकि बढ़ी हुई वेदी का क्षेत्रफल, पूर्व क्षेत्र से 'न' गुना तो क्ष = V न प्राप्त होता है । इस प्रकार के कुछ विशेष प्रकरण, शुल्ब में वर्णित हैं । न = १४
हो जाय,
6
या १४
य
एवं,
२४+३० २
+ म,
वाले प्रकरण ब्राह्मण साहित्य में पाये जाते हैं। इसी में शिने सित ( बाज पक्षी के आकार की
७
८
बेदी) का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिये [क* = १२ = ( सन्निकटतः ) १४ ] वर्ग समीकरण का उपयोग किया गया है । इनके सिवाय, निम्नलिखित प्रकार के अनिर्धारित ( undetermined ) समीकरण भी वेदियों की रचना में उपयोग में लाये गये हैं :
करे + ख° = गरे ( क, ख, ग तीनों अज्ञात हैं );
क' + अ = ग े ( क और ग अज्ञात हैं );
अक + बख + सग + दध = प क + ख + ग + घ= फ
}, जहाँ क, ख, ग और घ अज्ञात
1
इसके बाद, एक ज्योतिष का छोटा सा ग्रंथ वेदांग ज्योतिष महात्मा लगध द्वारा किसी स्वतंत्र ज्योतिष ग्रंथ के आधार पर यज्ञ की सुविधा के लिये संग्रहीत किया गया प्रतीत होता है । यह ग्रंथ सम्भवतः काश्मीर के श्रीनगर से भी उत्तर में, काबुल के अक्षांश के आसपास, कहीं रचित हुई ज्ञात होता है
* देखिये डा० गोरख प्रसाद द्वारा सम्पादित 'सरल विज्ञान सागर' पृष्ठ ४१०, ( इलाहाबाद विज्ञान परिषद् ), भाग १, अंक १ - ४, ( १९४६ )