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________________ प्रस्तावना (arithmetica) को व्यवस्थित किया, तथा रैखिकीय काशिकी पर विवेचन दिया। इस तरह पैथेमोस्त और यूक्लिड ने शांकव गणित को छोड़कर शेष प्राथमिक रेखागणित को ठोसरूप से सम्पूर्ण बना दिया । इनके पश्चात् आर्कमिडीज़ का नाम आता है, जो विश्व का दूसरा गणितीय भौतिकशास्त्री कहलाता है। यह गणितज्ञ ईसा से २८७ वर्ष पूर्व से २१२ वर्ष पूर्व तक रहा। इसने स्थैतिकी और उस्थतिकी ( hydrostatics) के गणितीयविज्ञानों की जड़ जमाई, अनुकेल कलन का अनुमान लगाया और अपने नाम की समानकोणिक कुन्तल (equiangular spiral "p=ag") की स्पर्श रेखाखींचकर चलन कलन (differential calculus) का स्थूल रूप में प्रयोग किया। इनके सिवाय, उसने विश्लेषण विधि का प्रयोग गोल, रम्भ, शंकु, गोलीय खंडों, परिभ्रमण से प्राप्त गोलज, अतिपरवलज ( hyperboloid ) आदि की शांकव गणना में किया। इनमें से कुछ को यदि आजकल के प्रतीकों में लिखा जाय तो अग्रलिखित को अनुकलित करना होगाः / " Sinx dx; J(ax + x२) dx. इनके सिवाय इसने परवलयज ( paraboloid ) के खंड का क्षेत्रफल निकालते समय फल की रैखिकीय उपपत्ति दी, और उसो की अनन्त श्रेढि का योग, अभिलेख बद्ध इतिहास के अनुसार, सर्वप्रथम . निकाला । वह श्रेढि है । (४) न जिसमें इस तथ्य का उपयोग किया गया कि सीमा । । इस प्रकार आज की गणित आर्कमिडीज़ के साथ उत्पन्न होकर उसी के साथ मृत होकर दोसहस्र वर्षों के पश्चात् देकार्ते (Descartes) और न्युटन द्वारा पुनर्जीवित की गई। इसके पश्चात् , (ईसा से १५० वर्ष पूर्व) हिपरकस (Hipparchus ) ने ग्रहों की गतियों का रेखागणित द्वारा निरूपण किया। इसमें १५ वीं सदी में कापरनिकस और १६ वीं सदी में केपलर ने परिवर्धन किया। कहा जाता है कि हेरन ( सन् २०० ईस्वी) ने त्रिभुज का क्षेत्रफल निकालने के लिये निम्नलिखित नियम दिया: A- [सा (सा-का) (सा-खा.) (सा-गा) पेप्पस ( Pappus) ने २५० ईस्वी में तीन महत्वपूर्ण साध्य खोजे। उसने दीर्घवृत्तज (ellipsoid ) आदि की नाभि ( focus ), नियता (directrix) के गुणों को सिद्ध किया और इस प्रकार विश्लेषकीय रेखागणित में शंकुच्छेदों के लिये साधारण द्विघात समीकार का आभास प्रकट किया । उसने प्रक्षेपी ज्यामिति का एक साध्य खोजा, और अनुकल कलन से (परिभ्रमण से प्राप्त न होनेवाले ) सांद्रों की परिमा (आयतन) को निकालने के लिये साध्य खोजे । प्रायः इसी काल में डायोफेंटस ( Diophantus) ने एकघातीय, दो और तीन अज्ञात वाले, समीकरणों को साधित किया। ग्रीक गमित का तीव्र विकास प्रायः उस समय से देखा जाता है, जब कि ईसा से ४८० वर्ष पूर्व हुई मैरथान ( Marathon ) आदि की लड़ाइयों में इन लोगों ने फारस देश पर अधिकार जमाकर वहाँ की गणित सीखी। यह कहना कठिन है कि फारस को यह गणित ज्ञान भारत से प्राप्त हुआ या बेबीलोन, सुमेर और फैनीकिया ( Phoenicia) से। विश्व सभ्यता के प्राचीन केन्द्र भारत में ( ईसा से प्रायः ३००० वर्ष पूर्व के ) उच्च सभ्यता के चिह्न सिंधु नदी की घाटी में मिलते हैं । उस समय के भारतीय ईंट के मकान बनाते थे, शहर की बन्दिश करते थे और स्वर्ण, रजत् , ताम्र, कांस आदि धातुओं का उपयोग कर उच्च श्रेणी का जीवन व्यतीत करते थे ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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