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________________ गणितसारसंग्रह ज्ञात था। इनके सिवाय एक और बात उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिद्ध ग्रेट पिरेमिड के अतिरिक्त एक और सबसे महान् पिरेमिड, मिस्र के किसी अज्ञात गणितज्ञ के मस्तिष्क में था, जिसकी खोज १९३० में मास्को पेपिरस ( Moscow papyrus) के अनुवाद के पश्चात् हुई है। इस महान गणितज्ञ ने उसमें एक सही सूत्र दिया है, जिसके द्वारा वर्ग आधार वाले स्तूप के लम्बछिन्नक का आयतन निकाला जा सकता है। सूत्र यह है : आयतन = 3 उ (अ+अब+ब२), जहाँ अ, ब, क्रमशः ऊर्ध्व तल तथा अधोतल के आधारों की भुजाओं के माप हैं, और उ उसकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई ( vertical height) है। इसका समय लगभग ईसा से १८५० वर्ष पूर्व है । इस सूत्र में ग्रीक लोगों की निश्शेषण विधि' (method of exhaustion), और १७वीं सदी के केवेलियर (Cavelieri) की "अविभाज्यों की रीति" (method of indivisibles) निहित है। अपने लिये वह सीमा (limit) का सिद्धान्त है और बाद में अनुकल कलन (integral calculus)। इनका किंचित् और सामान्य रूप (generalised form) आर्किमिडीज़ ने ईसा से प्रायः ५०० वर्ष पूर्व बतलाया है। गणित को मिस्रवासी भी इस हद तक बढ़ाकर आगे न बढ़ सके। मिस्र के इस गणितीय इतिहास के पश्चात् हम भारत न पहुँचकर पहिले भूमध्यसागर के रास्ते ग्रीस देश (यूनान ) पहुँचते हैं, जो ईसा से प्रायः ६०० वर्ष पूर्व के पश्चात् रेखा और शांकव गणित में अद्वितीय प्रगति करने के लिये प्रसिद्ध है। ग्रीस की गणित के इतिहास में ईसा से प्रायः ६५० वर्ष पूर्व हए थेल्स तथा (ईसा से प्रायः ६०० वर्ष पूर्व १ ५२७ वर्ष पूर्व ? उत्पन्न हए ) पैथेगोरस ने गणित को तर्क पर आधारित किया, और प्राकृतिक घटनाओं को अंक गणित द्वारा प्रदर्शित किया । पैथेगोरस के समय से प्रारम्भ हुई ग्रीस देश की प्रगति को देखकर यह अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि यह प्रगति पूर्वीय देशों के ज्ञान का आधार लेकर सम्भव हो सकी होगी। यह मान्यता है कि उसका सबसे महान् आविष्कार "समान आतति बल (tension) वाले धागों की लम्बाइयों के अंकगणितीय कुछ अनुपातों (ratios) पर संगीत-अंतरालों की निर्भरता" के विषय में था। उसके रैखिकीय साध्य से सभी परिचित हैं । इसी साध्य के द्वारा पैथेगोरस ने V२ की अपरिमेयता को बतलाया, और "भुजा" तथा "विकर्ण" संख्याओं की श्रेढि संरचना के विषय में नियम निकाला। इनके सिवाय पैथेगोरीय वगों ने वास्तविक मूल वाले वर्ग समीकारों का रैखिकीय हल निकाला, अनुपात का सिद्धान्त निकाला, पांच नियमित सांद्रों की रचना बतलाई, और दिये गये क्षेत्रफल की आकृति के तुल्य अन्य आकृतियाँ बनाकर बतलाई। उनके द्वारा प्रणीत रूपक ( figurate) संख्यायें आज की अंकगणित के लिए बड़ी सुझावपूर्ण सिद्ध हई। जैसे, त्रिभुजीय संख्याओं का प्रयोग एनपिडोक्लियन रसायनशास्त्र में करने पर यह सार निकलता है कि समस्त द्रव्य वास्तव में त्रिभुज हैं। पैथेगोरस के समय से अंक ज्योतिष का आरम्भ होना भी माना जाता है। कालान्तर में इटली के एलिया नगर निवासी ज़ीनो (Zeno-४९५१-४३५ ? ईस्वी पूर्व) के चार असद्भासों ( paradoxes ) में गणितीय अनन्त की अवधारणा के परिष्कृत करने का प्रयास परिलक्षित होता है। इसके सिवाय यूडो (Eudous-ईसा से ४०८ पूर्व से ३५५ तक)ने अनुपात का सिद्धान्त निकालकर मिस्र के आयतन निकालने के सूत्रों को सिद्ध किया, तथा गणितीय विश्लेषण की वास्तविक संख्या पद्धति system of real numbers) की स्थापना की। सम्भवतः इसी सिद्धान्त के आधार पर निश्शेषण विधि और डेडीकॅन्ड के बाद अनुकलकलन का उपयोग हुआ। कहा जाता है कि यूडोने भी पूर्व के देशों का भ्रमण किया था। यूकिड (ईसा से ३६५ वर्ष पूर्व से २७५ पूर्व) ने अंकगणितीय विभाजन पर आधारभूत साध्यों को सिद्ध किया। उसने रेखागणित को तर्क पद्धति पर बुना और अर्थमिति की
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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