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७.८९३] क्षेत्रगणितव्यवहारः
[ २०३ वर्गस्वरूपकरणिराशीनां युतिसंख्यानयनस्य च तेषां वर्गस्वरूपकरणिराशीनां यथाक्रमेण परस्परवियतितः शेषसंख्यानयनस्य च सूत्रमकेनाप्यपवर्तितफलपदयोगवियोगकृतिहताच्छेदात् । मूलं पद्युतिवियुती राशीनां विद्धि करणिगणितमिदम् ॥ ८८३ ॥
__अत्रोद्देशकः षोडशषत्रिंशच्छतकरणीनां वर्गमूलपिण्डं मे । अथ चैतत्पदशेष कथय सखे गणिततत्त्वज्ञ ॥८९३॥
इति सूक्ष्मगणितं समाप्तम् ।
कल वर्गमल राशियों के योग के संख्यात्मक मान तथा एक दूसरे में से स्वाभाविक क्रम में कुछ वर्गमूल राशियों को घटाने के पश्चात् शेषफल निकालने के लिये नियम
समस्त वर्गमूल राशियाँ एक ऐसे साधारण गुणनखंड द्वारा भाजित की जाती हैं, जो ऐसे भजनफलों को उत्पन्न करता है जो वर्गराशियाँ होती हैं। इस प्रकार प्राप्त वर्गराशियों के वर्गमूलों को जोड़ा जाता है, अथवा उन्हें स्वाभाविक क्रम में एक को दूसरे में से घटाया जाता है। इस प्रकार प्राप्त योग और शेषफल दोनों को वर्गित किया जाता है, और तब अलग अलग ( पहिले उपयोग में लाए हुए) भाजक गुणनखंड द्वारा गुणित किया जाता है । इन परिणामी गुणनफलों के वर्गमूल, प्रश्न में दी गई राशियों के योग और अंतिम अंतर को उत्पन्न करते हैं । समस्त प्रकार की वर्गमूल राशियों के गणित के संबंध में यह नियम जानना चाहिये ॥८॥
___ उदाहरणार्थ प्रश्न हे गणिततत्त्वज्ञ सखे, मुझे १६, ३६ और १०० राशियों के वर्गमूलों के योग को बतलाओ. और तब इन्हीं राशियों के वर्गमूलों के संबंध में अंतिम शेष भी बतलाओ। इस प्रकार, क्षेत्र गणित व्यवहार में सूक्ष्म गणित नामक प्रकरण समाप्त हुआ ॥८९३॥
(८८३) यहाँ आया हुआ "करणी" शब्द कोई भी ऐसी राशि दर्शाता है जिसका वर्गमूल निकालना होता है, और जैसी दशा हो उसके अनुसार वह मूल परिमेय (rational, धनराशि जो करणीरहित हो) अथवा अपरिमेय होता है। गाथा ८९३ में दिये गये प्रश्न को निम्न प्रकार से हल करने पर यह नियम स्पष्ट हो जावेगा
V१६ +/३६ +/१०० और (/ १००)-(/३६ - V१६) के मान निकालना हैं। इन्हें / ४ (/४ +/९ +/२५); V४ {/२५ -(V९ -V४)} द्वारा प्ररूपित किया जा सकता है।
साधित करने पर, पूर्व राशि =V४ (२+३+५) ; अपर राशि =V४ १५ -(३ - २)} =V ४ (१०)
__ " =V ४ (४) =vxx/१००
४xv१६ =V४००
" =V६४ -२०