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________________ २०४] गणितसारसंग्रहः [७. ९०३ जन्यव्यवहारः इतः परं क्षेत्रगणिते जन्यव्यवहारमुदाहरिष्यामः। इष्टसंख्याबीजाभ्यामायतचतुरश्रक्षेत्रानयनसूत्रम्वर्गविशेषः कोटिः संवर्गो द्विगुणितो भवेद्वाहुः । वर्गसमासः कर्णश्चायतचतुरश्रजन्यस्य ॥९०३ ।। अत्रोद्देशकः एकद्विके तु बीजे क्षेत्रे जन्ये तु संस्थाप्य । कथय विगणय्य शीघ्र कोटिभुजाकणमानानि ॥९१३॥ बीजे द्वे त्रीणि सखे क्षेत्रे जन्ये तु संस्थाप्य । कथय विगणय्य शीघ्रं कोटिभुजाकर्णमानानि ॥९२३॥ पुनरपि बीजसंज्ञाभ्यामायतचतुरश्रक्षेत्रकल्पनायाः सूत्रम्बीजयुतिवियुतिघातः कोटिस्तद्वर्गयोश्च संक्रमणे । बाहुश्रुती भवेतां जन्यविधौ करणमेतदपि ।। ९३३ ।। जन्य व्यवहार इसके पश्चात् हम क्षेत्रफल माप सम्बन्धी गणित में जन्य क्रिया का वर्णन करेंगे। मन से चुनी हई संख्याओं को बीजों के समान लेकर उनकी सहायता से आयत क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये नियम मन से प्राप्त आयत क्षेत्र के संबंध में बीज संख्याओं के वर्गों का अंतर लंब भुजा की संरचना करता है। बीज संख्याओं का गुणनफल २ द्वारा गुणित होकर दूसरी भुजा हो जाता है, और बीज संख्याओं के वर्गों का योग कर्ण बन जाता है ॥९०१॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ज्यामितीय आकृति के संबंध में (जिसे मन के अनुसार प्राप्त करना है) और २ लिखे जानेवाले बीज हैं । गणना के पश्चात् मुझे लम्ब भुजा, दूसरी भजा और कर्ण के मापों को शीघ्र बतलाओ ॥११॥ हे मित्र, २ और ३ को, मन के अनुसार किसी आकृति को प्राप्त करने के संबंध में. बीज लेकर गणना के पश्चात् लम्ब भुजा, अन्य भुजा और कर्ण शीघ्र बतलाओ ॥१२॥ पुनः बीजों द्वारा निरूपित संख्याओं की सहायता से आयत चतुरश्र क्षेत्र की रचना करने के लिये दूसरा नियम बीजों के योग और अंतर का गुणनफल लम्बमाप होता है। बीजों के योग और अंतर के वर्गों का संक्रमण अन्य भुजा तथा कर्ण को उत्पन्न करता है। यह क्रिया जन्य क्षेत्र को ( दिये हुए बीजों से ) प्राप्त करने के उपयोग में भी लाई जाती है ॥१३॥ (९०३) “जन्य" का शाब्दिक अर्थ "में से उत्पन्न" अथवा "में से व्युत्पादित" होता है, इसलिये वह ऐसे त्रिभुज और चतुर्भुज क्षेत्रों के विषय में है जो दिये गये न्यास (दत्त दशाओं) से प्राप्त किये जा सकते हैं । त्रिभुज और चतुर्भुज क्षेत्रों की भुजाओं की लम्बाई निकालने को जन्य क्रिया कहते हैं। बीज, जैसा कि यहाँ वर्णित है, साधारणतः धनात्मक पूर्णाक होता है। त्रिभुज और चतुर्भुन क्षेत्रों को प्राप्त करने के लिये दो ऐसे बीज अपरिवर्तनीय ढंग से दिये गये होते हैं। इस नियम का मूल आधार निम्नलिखित बीजीय निरूपण से स्पष्ट हो जावेगा यदि "अ" और "" बीज संख्यायें हों, तो अ२ - ब२ लम्ब का माप होता है । २ अब दूसरी भुजा का माप होता है और अ ब कर्ण का माप होता है, जब कि चतुर्भुज क्षेत्र आयत हो। इससे स्पष्ट है कि बीज ऐसी संख्याएँ होती हैं जिनके गुणनफल और वर्गों की सहायता से प्राप्त भुजाओं के मापों द्वारा समकोण त्रिभुज की रचना की जा सकती है। (९३३) यहाँ दिये गये नियम में अ२ - ब२, २ अ ब और अ + २ को (अ + ब) (अ - ब),
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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