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________________ -७.६९३ ] क्षेत्रगणितव्यवहारः [१९७ अत्रोद्देशकः व्यासोऽष्टादश दण्डा मुखविस्तारोऽयमपि च चत्वारः । कः परिधिः किं गणितं सूक्ष्म तत्कम्बुकावृत्ते ।। ६६३ ॥ . बहिश्चक्रवालवृत्तक्षेत्रस्य चान्तश्चक्रवालवृत्तक्षेत्रस्य च सूक्ष्मफलानयनसूत्रम्निर्गमसहितो व्यासो दशपदनिर्गमगुणो बहिर्गणितम् । रहितोऽधिगमेनासावभ्यन्तरचक्रवालवृत्तस्य ।। ६७३ ।। अत्रोद्देशकः व्यासोऽष्टादश दण्डाः पुनर्बहिनिर्गतास्त्रयो दण्डाः । सूक्ष्मगणितं वद त्वं बहिरन्तश्चक्रवालवृत्तस्य ॥ ६८३ ॥ व्यासोऽष्टादश दण्डा अन्तः पुनरधिगताश्च चत्वारः । सुक्ष्मगणितं वद त्वं चाभ्यन्तरचक्रवालवृत्तस्य ।। ६९ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न शंख आकृति के वक्ररेखीय क्षेत्र के संबंध में महत्तम चौड़ाई १८ दंड है, और मुख की चौड़ाई ४ दंड है । इसकी परिमिति और सूक्ष्म क्षेत्रफल के माप क्या हैं ? ॥६६॥ बाहर स्थित और भीतर स्थित ( बहिश्चक्रवाल और अंतश्चक्रवाल ) कंकण के संबंध में सूक्ष्म मापों को निकालने के लिये नियम भीतरी व्यास में चक्रवाल वृत्त की चौड़ाई जोड़कर, प्राप्त राशि को १० के वर्गमूल तथा चक्रवाल वृत्त की चौड़ाई द्वारा गुणित करते हैं। इससे बहिश्चक्रवाल वृत्त का क्षेत्रफल प्राप्त होता है। बाहरी व्यास को चक्रवाल वृत्त की चौड़ाई द्वारा हासित करते हैं। प्राप्त राशि को १० के वर्गमूल तथा चक्रवाल वृत्त की चौड़ाई द्वारा गुणित करने से अंतश्वक्रवाल वृत्त का क्षेत्रफल प्राप्त होता है ॥६७१॥ उदाहरणार्थ प्रश्न चक्रवाल वृत्त का भीतरी अथवा बाहरी व्यास का माप १८ दंड है। चक्रवाल वृत्त की चौडाई ३ दंड है। बहिश्चक्रवाल वृत्त तथा अंतश्चक्रवाल वृत्त का सूक्ष्म माप बतलाओ ।। ६८१॥ बाहरी व्यास १८ दंड है। अंतश्चक्रवाल वृत्त की चौड़ाई ४ दंड है। अंतश्चक्रवाल वृत्त का सूक्ष्म क्षेत्रफल निकालो ॥ ६९३ ॥ क्षेत्रफल = [{(अ-३ म)x३} + (5)]x/१० ; जहाँ अ महत्तम चौड़ाई का माप है और म शंख के मुख की चौड़ाई है। गाथा २३ के नोट के अनुसार यहाँ भी इस आकृति को दो असमान अर्द्धवृत्तों द्वारा संरचित किया गया है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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