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गणितसारसंग्रहः
यवाकारक्षेत्रस्य च धनुराकारक्षेत्रस्य च सूक्ष्मफलानयनसूत्रम् - इषुपादगुणश्च गुणो दशपदगुणितश्च भवति गणितफलम् । यवसंस्थानक्षेत्रे धनुराकारे च विज्ञेयम् ॥ ७०३ ॥
अत्रोदेशकः
द्वादशदण्डायामो मुखद्वयं सूचिरपि च विस्तारः । चत्वारो मध्येऽपि च यवसंस्थानस्य किं तु फलम् ।। ७१३ ।। धनुराकारसंस्थाने ज्या चतुर्विंशतिः पुनः । चत्वारोऽस्येषुरुद्दिष्टः सूक्ष्मं किं तु फलं भवेत् ।। ७२३ ।।
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धनुराकारक्षेत्रस्य धनुः काष्ठबाणप्रमाणानयनसूत्रम् - शरवर्गः षड्गुणितो ज्यावर्गसमन्वितस्तु यस्तस्य । मूलं धनुर्गुणेषुप्रसाधने तत्र विपरीतम् ॥ ७३३ ।।
[ ७.७०३
यवाकार क्षेत्र तथा धनुषाकार क्षेत्र के सम्बन्ध में सूक्ष्म मानों को निकालने के लिये नियमधनुष की डोरी को बाण की एक चौथाई राशि द्वारा गुणित करते हैं । प्राप्त फल को १० के वर्गमूल द्वारा गुणित करने पर धनुषाकार तथा यवाकार क्षेत्र के सम्बन्ध में क्षेत्रफल का सूक्ष्म रूप से ठीक मान प्राप्त होता है ।। ७०२ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
यवमन्य को बीच से फाड़ने से प्राप्त क्षेत्र की आकृति की महत्तम लम्बाई १२ दंड है; दो सिरे सुई - बिन्दु हैं, और बीच में चौदाई ४ दंड है। क्षेत्रफल क्या ? ॥ ७१ ॥ धनुषाकार रूपरेखा वाली आकृति के संबंध में ढोरी २४ है तथा बाण ४ है । क्षेत्रफल का सूक्ष्म माप क्या है ? ॥ ७२३ ॥
धनुष के वक्र काष्ठ तथा बाण को निकालने के लिये नियम, जब कि आकृति धनुषाकार है
के मापक वर्ग ६ द्वारा गुणित किया जाता है । परिणामी योग का वर्गमूळ धनुष के वक्र काष्ठ का माप होता है निकालने के सम्बन्ध में इसकी विपरीत क्रिया करते हैं ॥ ७३३ ॥
इसमें डोरी के वर्ग को जोड़ते हैं । । डोरी का माप और बाण का माप
( ७०३) धनुष के समान आकृति, वृत्त की अवधा जैसी, स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । यहाँ
अवधा का क्षेत्रफल = क x X/१० है । यह शुद्ध माप नहीं है ।
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उसी की
अर्द्धवृत्त के क्षेत्रफल को प्राप्त करने के लिये जो नियम है यह साम्यता पर आधारित है। अर्द्धवृत्त का क्षेत्रफल = x २त्र X
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चापकर्ण के दोनों ओर के धनुष ( वृत्त की अवधायें ) मिलाने से यवाकार आकृति प्राप्त होती है। स्पष्ट है कि इस दशा में बाण का माप दुगुना हो जाता है। इस प्रकार यह सूत्र इसके लिये भी प्रयोज्य है ।
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है, जहां त्र त्रिज्या है । साधारण
त्रिलोक प्रज्ञप्ति में (४/२३७३ भाग १, पृष्ठ ४४२ पर ) अवधा का क्षेत्रफल सूत्र रूप से यह है— धनुषक्षेत्र = V ( } बाण जीवा ) २ x १०