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________________ -७.३०] क्षेत्रगतिणव्यवहारः [१८७ अत्रोद्देशकः चत्वालक्षेत्रस्य व्यासस्तु भसंख्यकः परिधिः । षट्पञ्चादशदृष्टं गणितं तस्यैव किं भवति ॥२६।। कूर्मनिभस्योन्नतवृत्तस्योदाहरणमविष्कम्भः पञ्चदश दृष्टः परिधिश्च षट्त्रिंशत् । कूर्मनिभे क्षेत्रे किं तस्मिन् व्यवहारजं गणितम् ।। २७ ॥ अन्तश्चक्रवालवृत्तक्षेत्रस्य बहिश्चक्रवालवृत्रक्षेत्रस्य च व्यवहारफलानयनसूत्रम् - निर्गमसहितो व्यासस्त्रिगुणो निर्गमगुणो बहिर्गणितम् । रहिताधिगमव्यासादभ्यन्तरचक्रवालवृत्तस्य ।। २८॥ अत्रोद्देशकः व्यासोऽष्टादश हस्ताः पुनर्बहिर्निर्गतात्रयस्तत्र । व्यासोऽष्टादश हस्ताश्चान्तः पुनरधिगतास्त्रयः किं स्यात् ।। २९ ।। ___ समवृत्तक्षेत्रस्य व्यावहारिकफलं च परिधिप्रमाणं च व्यासप्रमाणं च संयोज्य एतत्संयोगसंख्यामेव स्वीकृत्य तत्संयोगप्रमाण राशेः सकाशात् पृथक परिधिव्यास फलानां संख्यानयनसूत्रम्गणिते द्वादशगुणिते मिश्रप्रक्षेपकं चतुःषष्टिः । तस्य च मूलं कृत्वा परिधिः प्रक्षेपकपदोनः ।। ३० ।। ___उदाहरणार्थ प्रश्न चत्वाल ( होम वेदी का अग्नि कुण्ड ) क्षेत्र के क्षेत्रफल के सम्बन्ध में ग्यास २७ है और परिधि ५६ है। इस कुण्ड का क्षेत्रफल निकालो ॥ २६ ॥ कछुवे की पीठ की तरह उन्नतोदर वर्तुलतल के लिये उदाहरणार्थ प्रश्न ग्यास १५ है और परिधि ३६ है। कछुवे की पीठ की भांति इस क्षेत्र का व्यावहारिक क्षेत्रफल निकालो ॥ २७ ॥ भीतरी कट्टण और बाहरी कङ्कण के क्षेत्रफल का व्यावहारिक मान निकालने के लिये नियम भीतरी व्यास को कङ्कणक्षेत्र की चौड़ाई द्वारा बढ़ाकर जब ३ द्वारा गुणित किया जाता है, और कङ्कणक्षेत्र की चौड़ाई द्वारा गुणित किया जाता है, तब बाहरी कङ्कण का क्षेत्रफल उत्पन्न होता है । इसी प्रकार भीतरी कङ्कण के क्षेत्रफल को कङ्कण की चौड़ाई द्वारा बासित न्यास द्वारा गुणित करने से प्राप्त करते हैं ॥ २८॥ उदाहरणार्थ प्रश्न व्यास १८ हस्त है, और बाहरी कङ्कण क्षेत्र की चौड़ाई ३ है; व्यास १८ हस्त है, और फिर से भीतरी करण की चौड़ाई ३ हस्त है। प्रत्येक दशा में कक्षण का क्षेत्रफल निकालो ॥ २९ ॥ वृत्त आकृति की परिधि, व्यास और क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम, जबकि क्षेत्रफल, परिधि और व्यास का योग दिया गया हो १२ द्वारा गुणित उक्त तीन राशियों के मिश्रित योग में प्रक्षेपित ६४ जोड़ते हैं, और इस योग का वर्गमूल निकालते हैं । तदुपरांत इस वर्गमूल राशि को प्रक्षेपित ६४ के वर्गमूल द्वारा हासित करने से परिधि का माप प्राप्त होता है ॥ ३० ॥ (२८ ) अन्तश्चक्रवाल वृत्तक्षेत्र और बहिश्चक्रवाल वृत्तक्षेत्र के आकार ७ वी गाथा के नोट में कथित नेमिक्षेत्र के आकार के समान हैं। इसलिये वह नियम जो इन सब आकृतियों के क्षेत्रफल निकालने के लिये है, व्यवहार में समान साधित होता है । (३०) यह नियम निम्नलिखित बीजीय निरूपण से स्पष्ट हो जावेगा
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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