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________________ १८६] गणितसारसंग्रहः [७. २३ शङ्खाकारवृत्तस्य फलानयनसूत्रम्वदना?नो व्यासस्त्रिगुणः परिधिस्तु कम्बुकावृत्ते । वलयाकृतित्र्यंशो मुखार्धवर्गत्रिपादयुतः ॥ २३ ॥ अत्रोद्देशकः व्यासोऽष्टादश हस्ता मुखविस्तारोऽयमपि च चत्वारः । कः परिधिः किं गणितं कथय त्वं कम्बुकावृत्ते ॥ २४ ॥ निम्नोन्नतवृत्तयोः फलानयनसूत्रम्परिधेश्च चतुर्भागो विष्कम्भगुणः स विद्धि गणितफलम् । चत्वाले कूर्मनिभे क्षेत्रे निम्नोन्नते तस्मात् ॥ २५ ॥ शंख के आकार की वक्ररेखीय आकृति का परिणामी क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम शंख के आकार के वक्ररेखीय ( curvilinear ) आकृति के सम्बन्ध में, सबसे बड़ी चौड़ाई को मुख की अर्द राशि द्वारा हासित और ३ द्वारा गुणित करने पर परिमिति (परिधि) प्राप्त होती है। इस परिमिति की अर्द्धराशि के वर्ग के एक तिहाई भाग को मुख की अर्द्धराशियों के वर्ग को तीन चौथाई राशि द्वारा हासित करते हैं। इस प्रकार क्षेत्रफल प्राप्त होता है ॥ २३ ॥ उदाहरणार्थ एक प्रश्न शंख (कम्बुकावृत्त) की आकृति के सम्बन्ध में चौड़ाई १८ हस्त और मुख ४ हस्त है। उसकी परिमिति तथा क्षेत्रफल निकालो ॥ २४ ॥ नतोदर और उन्नतोदर वर्तुल तलों के क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम समझो कि परिधि की एक चौथाई राशि को व्यास द्वारा गुणित करने पर परिणामी क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इस प्रकार चत्वाल और कछुवे की पीठ जैसे नतोदर और उन्नतोदर क्षेत्रों का क्षेत्रफल प्राप्त करना पड़ता है ॥ २५॥ (२३) यदि अ व्यास हो और म मुख का माप हो, तब ३ (अ-३ म) परिधि का माप होता है और १३ ( अ-३ म) | °x3+ ३x (म) क्षेत्रफल का माप होता है । दिये हुए वर्णन से आकृति का आकार स्पष्ट नहीं है। परन्तु परिधि और क्षेत्रफल के लिये दिये गये मानों से वह एक ही व्यास पर दो और भिन्न-भिन्न व्यास वाले वृत्तों को खींचकर प्राप्त हुई आकृति का आकार माना जा सकता है, जो ६ वीं गाथा के नोट में १२ वी आकृति में बतलाया गया है। (२५) यहाँ निर्दिष्ट क्षेत्रफल गोलीय खंड का ज्ञात होता है। प्रतीक रूप से यह क्षेत्रफल (C४ व ) के बराबर है, जहाँ प छेदीय वृत्त (किनार ) की परिधि है और व व्यास है । परन्तु इस परिधि प्रकार के गोलीय खंड के तल का क्षेत्रफल (२xnxxxउ) होता है, जहाँ nita त्र = केन्द्रीय वृत्त ( किनार ) की त्रिज्या, और उ गोलीय खंड की ऊँचाई है । ४ व्यास,
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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