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गणितसारसंग्रहः
[७. ३१ -
अत्रोद्देशकः परिधिव्यासफलानां मिश्रं षोडशशतं सहस्त्रयुतं । कः परिधिः किं गणितं व्यासः को वा ममाचक्ष्व ॥ ३१ ॥
यवाकारमर्दलाकारपणवाकारवज्राकाराणां क्षेत्राणां व्यावहारिकफलानयनसूत्रमयवमुरजपणवशक्रायुधसंस्थानप्रतिष्ठितानां तु । मुखमध्यसमासार्धं त्वायामगुणं फलं भवति ।। ३२ ।।
___ अत्रोद्देशकः यवसंस्थानक्षेत्रस्यायामोऽशीतिरस्य विष्कम्भः । मध्यश्चत्वारिंशत्फलं भवेत्किं ममाचक्ष्व ॥३३॥ आयामोऽशीतिरयं दण्डा मुखमस्य विंशतिमध्ये । चत्वारिंशत्क्षेत्रे मृदङ्गसंस्थानके बेहि ॥ ३४ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी वृत्त की परिधि, व्यास और क्षेत्रफल का योग १११६ है, उस वृत्त की परिधि, गणना किया हुआ क्षेत्रफल और व्यास के मापों को प्राप्त करो ॥ ३१ ॥
लम्बाई की ओर से फाड़ने से प्राप्त ( अन्वायाम छेद के ) (१) यवधान्य (२) मर्दल (३) पणव और (४) वज्र आकार की वस्तुओं के व्यावहारिक क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम
यवधान्य, मुरज, पणव और वज्र के आकार के क्षेत्रफलों के सम्बन्ध में इष्ट माप वह है जो अंत और मध्य माप के योग की अर्द्धराशि को लम्बाई द्वारा गुणित करने पर प्राप्त होता है ॥ ३२॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी मृदंग के आकार के क्षेत्र का क्षेत्रफल निकालो जो लम्बाई में ८० दंड और अंत (मुख ) में २० तथा मध्य में ४० दंड हो ॥ ३४ ॥ किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में जिसका आकार पणव समान
मानलो प वृत्त की परिधि है। चूंकि 7 का मान ३ लिया गया है, इसलिये व्यास =1 और ३. प्रवृत्त का क्षेत्रफल है । यदि परिधि, व्यास और वृत्त के क्षेत्रफल, इन तीनों, का मिश्रित योग म हो, तो नियम में दिये गया सूत्र प=/ १२ म + ६४-V६४ को समीकरण प+ +३ =म द्वारा सरलतापूर्वक प्राप्त कर सकते हैं।
(३२) मुरज का अर्थ मर्दल तथा मृदंग भी होता है। गाथा में कथित विभिन्न आकृतियों के आकार निम्नलिखित हैं
यवाकार क्षेत्र मुरजाकार क्षेत्र पणवाकार क्षेत्र वज्राकार क्षेत्र
समस्त आकृतियों के क्षेत्रफल के माप इस गाथा में दिये गये नियमानुसार अनुमानतः ठीक हैं, क्योंकि नियम इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक सीमावर्ती वक्ररेखा उन सरल रेखाओं के योग के बराबर है, जो वक्रों के सिरों (छोरों अथवा अन्तों) को मध्य बिन्दु के मिलाने से प्राप्त होती हैं।