________________
मिश्रकव्यवहारः
[१७५
-६. ३२६३ ]
अत्रोद्देशकः चत्वार्याद्यष्टोत्तरमेको गच्छत्यथो द्वितीयो ना। द्वौ प्रचयश्व दशादिः समागमे कस्तयोः कालः ॥ ३२३३ ॥
वृध्द्युत्तरहीनोत्तरयोः समागमकालानयनसूत्रम्शेषश्चाद्योरुभयोश्चययुतदलभक्तरूपयुतः । युगपत्प्रयाणकृतयोर्मार्गे संयोगकालः स्यात् ।। ३२४३ ।।
अत्रोद्देशकः। पञ्चाद्यष्टोत्तरतः प्रथमो नाथ द्वितीयनरः । आदिः पञ्चननव प्रचयो हीनोऽष्ट योगकालः कः ।। ३२५३ ।।
शीघ्रगतिमन्दगत्योः समागमकालानयनसूत्रम्मन्दगतिशीघ्रगत्योरेकाशागमनमत्र गम्यं यत् । तद्गत्यन्तरभक्तं लब्धदिनैस्तैः प्रयाति शीघ्रोऽल्पम् ॥३२६३।।
___ उदाहरणार्थ प्रश्न एक व्यक्ति ४ से आरम्भ होने वाली और उत्तरोत्तर प्रचय ८ द्वारा बढ़ने वाली गतियों से यात्रा करता है । दूसरा व्यक्ति १० से आरम्भ होने वाली और उत्तरोत्तर २ प्रचय द्वारा बढ़ने वाली गतियों से यात्रा करता है । उनके मिलने का समय क्या है? ॥ ३२३३ ।।
एक ही स्थान से रवाना होने वाले और एक ही दिशा में समान्तर श्रेढि में बढ़नेवाली गतियों से यात्रा करने वाले दो व्यक्तियों के मिलने का समय निकालने के लिए नियम, जब कि प्रथम दशा में प्रचय धनात्मक है, और दूसरी दशा में ऋणात्मक है :
उक्त दो प्रथम पदों के अंतर को उक्त दो दिये गये प्रचयों का प्ररूपण करनेवाली संख्याओं के योग की अर्द्ध राशि द्वारा भाजित करने के पश्चात् प्राप्त फल में १ जोड़ा जाता है। यह उन दो यात्रियों के मिलने का समय होता है ॥३२४॥
उदाहरणार्थ प्रश्न प्रथम व्यक्ति ५ से आरम्भ होने वाली और उत्तरोत्तर प्रचय द्वारा बढ़नेवाली गतियों से यात्रा करता है। दूसरे व्यक्ति की आरम्भिक गति ४५ है और प्रचय ऋण ८ है। उनके मिलने का समय क्या है ? ॥३२५॥
भिन्न समयों पर रवाना होनेवाले और क्रमशः तीव्र और मंद गति से एक ही दिशा में चलनेवाले दो मनुष्यों के मिलने का समय निकालने के लिए नियम
मंदगति और तीव्रगति वाले दोनों एक ही दिशा में गमनशील हैं। तय की जानेवाली दूरी को यहाँ उन दो गतियों के अंतर द्वारा भाजित किया जाता है। इस भजनफल द्वारा प्ररुपित दिनों में, तीव्र गतिवाला मंदगति वाले की ओर जाता है ॥३२६॥
( ३२४३ ) इसकी तुलना ३२२३ वीं गाथा में दिये गये नियम से करो।