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गणितसारसंग्रहः
[६.३१९
द्विगुणो मार्गस्तद्गतियोगहृतो योगकालः स्यात् ॥३१९ ।।
___ अत्रोद्देशकः कश्चिन्नरः प्रयाति त्रिभिरादा उत्तरैस्तथाष्टाभिः । नियतगतिरेकविंशतिरनयोः कः प्राप्तकालः स्यात् ।। ३२० ।।
अपरा|दाहरणम् । षड् योजनानि कश्चित्पुरुषस्त्वपरः प्रयाति च त्रीणि । उभयोरभिमुखगत्योरष्टोत्तरशतकयोजनं गम्यम् । प्रत्येकं च तयोः स्यात्कालः किं गणक कथय मे शीघ्रम् ॥ ३२१३ ।।
संकलितसमागमकालयोजनानयनसूत्रम् - उभयोराद्योः शेषश्चयशेषहृतो द्विसंगुणः सैकः । युगपत्प्रयाणयोः स्यान्मार्गे तु समागमः कालः ॥ ३२२३ ।।
का इष्ट समय प्राप्त होता है। (जब दो मनुष्य निश्चित गति से विरद्ध दिशाओं में चल रहे हों, तब उनमें से किसी एक के द्वारा तय की गई औसत दूरी की दुगुनी राशि पूरी तय की जानेवाली यात्रा होती है । जब यह उनकी गतियों के योग द्वारा भाजित की जाती है, तब उनके मिलने का समय प्राप्त होता है।)।। ३१९ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न कोई मनुष्य आरम्भ में ३ की गति से और उत्तरोत्तर ८ प्रचय द्वारा नियमित रूप से बढ़ाने वाली गति से जाता है । दूसरे मनुष्य की निश्चित गति २१ है । यदि वे एक ही दिशा में, एक समय, उसी स्थान से प्रस्थान करें, तो उनके मिलने का समय क्या होगा ? ।। ३२० ॥
( ऊपर की गाथा के ) उत्तरार्द्ध के लिये उदाहरणार्थ प्रश्न ____एक मनुष्य ६ योजन की गति से और दूसरा ३ योजन की गति से यात्रा करता है। उनमें से किसी एक के द्वारा तय की गई औसत दूरी १०० योजन है। हे गणक, उनके मिलने का समय निकालो ।। ३२१-३२११॥
यदि दो व्यक्ति एक ही स्थान से, एक ही समय तथा विभिन्न संकलित गतियों से प्रस्थान करें, तो उनके मिलने का समय और तय की गई दूरी निकालने के लिये नियम
उक्त दो प्रथम पदों का अंतर जब उक्त दो प्रचयों के अंतर से भाजित होकर और तब २ से गुणित होकर १ द्वारा बढ़ाया जाय, तो युगपत् यात्रा करने वाले व्यक्तियों के मिलने का समय उत्पन्न होता है ।। ३२२३ ॥
+ १ = स, जहाँ व निश्चल वेग है, ब प्रचय है,
(३१९) बीजीय रूप से, (व - अ) और स समय है।
(३२११) बीजीय रूप से, न%
अरअ१२+१. ब-बल