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मिश्रकन्यवहारः
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अत्रोद्देशकः पश्च गुणोत्तरमादिद्वौ त्रीण्यधिकं पदं हि चत्वारः । अधिकगुणोत्तरचितिका कथय विचिन्त्याशु गणिततत्त्वज्ञ ।। ३१५ ॥ आदिस्त्रीणि गुणोत्तरमष्टौ हीनं द्वयं च दश गच्छः। हीनगुणोत्तरचितिका का भवति विचिन्त्य कथय गणकाशु ।। ३१६ ।।
आद्युत्तरगच्छधनमिश्राद्युत्तरगच्छानयनसूत्रम् - मिश्रादुद्धृत्य पदं रूपोनेच्छाधनेन सैकेन । लब्धं प्रचयः शेषः सरूपपदभाजितः प्रभवः ॥३१७।।
अत्रोद्देशकः आद्युत्तरपदमिश्रं पञ्चाशद्धनमि हैव संदृष्टम् । गणितज्ञाचक्ष्व त्वं प्रभवोत्तरपदधनान्याशु ॥३१८।।
संकलितगतिध्वगतिभ्यां समानकालानयनसूत्रमध्रुवगतिरादिविहीनश्चयदलभक्तः सरूपकः कालः ।
उदाहरणार्थ प्रश्न साधारण निष्पत्ति ५ है, प्रथमपद २ है, विभिन्न पदों में जोड़ी जानेवाली राशि ३ है, और पदों की संख्या ४ है । हे गणित तत्वज्ञ, विचार कर शीघ्र ही (निर्दिष्ट रीति के अनुसार निर्दिष्ट राशि द्वारा बढ़ाए जाते हैं पद जिसके ऐसी) गुणोत्तर श्रेढि के योग को बतलाओ॥ ३१५॥
प्रथमपद ३ है, साथारण निष्पत्ति ८ है, पदों में से घटाई जानेवाली राशि २ है, और पदों की संख्या १० है। ऐसी श्रेढि का, हे गणितज्ञ, योग निकालो ॥३॥६॥
प्रथमपद, प्रचय, पदों की संख्या और किसी समान्तर श्रेदि के योग के मिश्रित योग में से प्रथम पद. प्रचय और पदों की संख्या निकालने के लिये नियम
श्रेढि के पदों की संख्या का निरूपण करनेवाली मन से चुनी हुई संख्या को दिये गये मिश्रित योग में से घटाया जाता है। तब से आरम्भ होने वाली और एक कम पदों की (मन से चुनी हुई ) संख्यावाली प्राकृत संख्याओं का योग द्वारा बढ़ाया जाता है। इस परिणामी फल को भाजक मान कर, उपर कथित मिश्रित योग से प्राप्त शेष को भाजित करते हैं । यह भजनफल इष्ट प्रचय होता है, और इस भाजन की क्रिया में जो शेष बचता है उसे जब एक अधिक (मन से चुनी हुई) पदों की संख्या द्वारा भाजित करते हैं, तो इष्ट प्रथमपद प्राप्त होता है ॥ ३१७ ।।
उदाहरणार्थ प्रश्न यह देखा जाता है कि किसी समान्तर श्रेढि का योग, प्रथमपद, प्रचय और पदों की संख्या में मिलाये जाने पर, ५० होता है। हे गणक, शीघही प्रथमपद, प्रचय, पदों की संख्या और श्रेढि के योग को बतलाओ ॥ ३१८॥
सङ्कलित गति तथा ध्रव गति से गमन करने वाले दो व्यक्तियों ( को एक साथ रवाना होने पर एक जगह फिर से मिलने के लिये समय की समान सीमा निकालने के लिये नियम
अपरिवर्तनशील गति को समान्तर श्रेढि वाली गतियों के प्रथम पद द्वारा हासित करते हैं, और तब प्रचय की अर्द्ध राशि द्वारा भाजित करते हैं। इस परिणामी राशि में जब १ जोड़ते हैं, तब मिलने
(३१७ ) अध्याय दो की गाथाएँ ८०-८२ तथा उनके नोट देखिये । * समान्तर श्रेदि के पदों के रूप में प्ररूपित उत्तरोत्तर गतियों रूप गति ।