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________________ गणितसारसंग्रहः अधिकहीनोत्तर संकलितधने आद्युत्तरानयनसूत्रम् - गच्छविभक्ते गणिते रूपोनपदार्धगुणितचयहीने | आदिः पदहृतवित्तं चाद्यूनं व्येकपददलहृतः प्रचयः ।। २९२ ।। अत्रोद्देशकः १६६ ] चत्वारिंशद्गणितं गच्छः पञ्च त्रयः प्रचयः । न ज्ञायतेऽधुनादिः प्रभवो द्विः प्रचयमाचक्ष्व ।। २९३ || श्रेढीसंकलित गच्छानयनसूत्रम् - आदिविहीनो लाभः प्रचयार्धहृतः स एव रूपयुतः । गच्छो लाभेन गुणो गच्छः ससंकलितधनं च संभवति ॥ २९४ ॥ अत्रोदेशकः त्रीण्युत्तरमादि वनिताभिश्चोत्पलानि भक्तानि । estar भागोऽष्टौ कति वनिताः कति च कुसुमानि ।। २९५ ।। धनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रचयवाली समान्तर श्रेणी के योग के सम्बन्ध में प्रथमपद और प्रचय निकालने के लिये नियम श्रेणी के दिये गये योग को पदों की संख्या द्वारा भाजित करो, और परिणामी भजनफल में से प्रचय द्वारा गुणित एक कम पदों की संख्या की आधीराशि को घटाओ । इस प्रकार, श्रेणी का प्रथमपद प्राप्त होता है। श्रेणी के योग को पदों की संख्या द्वारा भाजित करते हैं। इस परिणामी भजनफल में से प्रथम पद घटाते हैं। शेष को जब १ कम पदों की संख्या की आधी राशि द्वारा भाजित करते हैं, तो प्रचय प्राप्त होता है ||२९२ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न श्रेणी का योग ४० है; पदों की संख्या ५ है; प्रचय ३ है; प्रथमपद अज्ञात है । उसे निकालो। यदि प्रथमपद २ हो, तो प्रचय प्राप्त करो ॥ २९३ ॥ जो योग को पदों की अज्ञात संख्या से भाजित करने पर भजनफल के रूप में प्राप्त होता है, ऐसे ज्ञात लाभ की सहायता से समान्तर श्रेणी में योग और पदों की संख्या निकालने के लिये नियमलाभ को प्रथम पद ( आदिपद ) द्वारा हासित किया जाता है, और तब प्रचय की आधी राशि द्वारा भाजित किया जाता है । परिणामी राशि में १ जोड़ने पर श्रेणी के पदों की संख्या प्राप्त होती है । श्रेणी के पदों की संख्या को लाभ द्वारा गुणित करने पर श्रेणी का योग प्राप्त होता है ॥ २९४ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न समान्तर श्रेणी के योग प्ररूपक, कोई संख्या के, उत्पल फूल लिये गये । २ प्रथमपद है, ३ प्रचय है । कोई संख्या की स्त्रियों ने आपस में ये फूल बराबर-बराबर बाँटे । प्रत्येक स्त्री को ८ फूल हिस्से में मिलें । स्त्रियाँ कितनी थीं, और फूल कितने थे ? ॥ २९५ ॥ 1 ( २९२ ) बीजीय रूप से, श न - १ न २ (२९४) बीजीय रूप से, न = ( २९५ ) स्त्रियों की संख्या ही अ = ब; और ब = न - १ ( ~ ~ ~ ~ ) ÷ 7 = 2 - अ = न [ ६. २९२ ल - अ ब/ २ इस प्रश्न में पदों की संख्या है । न + १, जहाँ ल = ‍ जो लाभ है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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