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________________ –६. २९१ ] मिश्रकव्यवहारः अत्रोदेशकः के स्युः I परिधिशरा अष्टादश तूणीरस्थाः शराः गणितज्ञ यदि विचित्रे कुट्टीकारे श्रमोऽस्ति ते कथय ।। २८९ ।। इति मिश्रकव्यवहारे विचित्रकुट्टीकारः समाप्तः । श्रेढीबद्धसंकलितम् इतः परं मिश्रकगणित श्रेढीबद्धसंकलितं व्याख्यास्यामः । हीनाधिकचयसंकलितधनानयनसूत्रम्व्येका पदोनाधिकचयघातोनान्वितः पुनः प्रभवः । गच्छाभ्यस्तो हीनाधिकचयसमुदाय संकलितम् ॥ २९० ॥ अत्रोद्देशकः चतुरुत्तरदश चादिर्हीनचयस्त्रीणि पञ्च गच्छः किम् । द्वावादिर्वृद्धिचयः षट् पदमष्टौ धनं भवेदत्र ॥ २९९ ॥ [ १६५ उदाहरणार्थ प्रश्न परिध्यान शरों की संख्या १८ है । कुल मिलाकर तरकश में कितने शर हैं, हे गणितज्ञ, यदि तुमने विचित्र कुट्टीकार के सम्बन्ध में कष्ट किया है, तो इसे हल करो ॥ २८९ ॥ इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में विचित्र कुट्टीकार नामक प्रकरण समाप्त हुआ । श्रेढीबद्ध संकलित ( श्रेणियों का संकलन ) इसके पश्चात् हम गणित में श्रेणियों के संकलन की व्याख्या करेंगे । धनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रचयवाली समान्तर श्रेणी के योग को निकालने के लिये नियम : प्रथमपद उस गुणनफल के द्वारा या तो घटाया अथवा बढ़ाया जाता है, धनात्मक प्रचय में श्रेणी के एक कम पदों की संख्या की अर्द्ध राशि का गुणन करने से तब यह प्राप्तफल श्रेणी के पदों की संख्या से गुणित किया जाता है । इस प्रकार, ऋणात्मक प्रचयवाली समान्तर श्रेणी के योग को प्राप्त किया जाता है ॥ २९० ॥ जो ऋणात्मक या प्राप्त होता है । धनात्मक अथवा उदाहरणार्थ प्रश्न प्रथम पद १४ है; ऋणात्मक प्रचय ३ है; पदों की संख्या ५ है । प्रथमपद २ है; घनात्मक प्रचय ६ है; और पदों की संख्या ८ है । इन दशाओं में से प्रत्येक में श्रेणी का योग बतलाओ ।। २९१॥ ( २९० ) बीजीय रूप से, (न'ब° अ) न = श, जहाँ न पदों की संख्या है, अ प्रथम पद है; ब प्रचय है, और श श्रेणीका योग है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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