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________________ १६४] गणितसारसंग्रहः [६. २८७ अत्रोद्देशकः सप्तहृते को राशिस्त्रिगुणो वर्गीकृतः शरैर्युक्तः । त्रिगुणितपञ्चाशहृतस्त्वर्धितमूलं च पश्चरूपाणि ॥ २८७ ।। साधारणशरपरिध्यानयनसूत्रम्शरपरिधित्रिकमिलनं वर्गितमेतत्पुनस्त्रिभिः सहितम् । द्वादशहृतेऽपि लब्धं शरसंख्या स्यात्कलापकाविष्टा ।। २८८ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न वह कौन सी राशि है, जो ७ द्वारा भाजित होकर, तब ३ द्वारा गुणित होकर, तब वगित की जाकर, तब ५ द्वारा बढ़ाई जाकर, तब द्वारा भाजित होकर; तब आधी होकर, और तब वर्गमूल निकाले जाने पर, ५ होती है ? ॥ २८७ ।। तरकश के साधारण परिध्यान ( common circumferential layer ) की संरचना करनेवाले तीरों की युग्म संख्या की सहायता से किसी तरकश में रखे हुए बाणों की संख्या निकालने के लिये नियम परिध्यान बनाने वाली बाणों की संख्या में ३ जोड़ो, तब इस परिणामी योग को वर्गित करो, और उस वर्गित राशि में फिर से ३ जोड़ो। यदि प्राप्तफल १२ द्वारा भाजित किया जाय, तो भजनफल तरकश के तीरों की संख्या का प्रमाण बन जाता है ॥२८॥ ( २८८ ) तीरों की कुल संख्या प्राप्त करने के लिये, यहाँ दिया गया सूत्र (न + ३) + ३ है: १२ जहाँ 'न' परिध्यान शरों की संख्या है । यह सूत्र निम्नलिखित रीति से भी प्राप्त हो सकता है रेखागणित ( ज्यामिति ) से सिद्ध किया जा सकता है कि किसी वृत्त के चारों ओर केवल ६ वृत्त खींचे जा सकते हैं। ऐसे सभी वृत्त तुल्य होते हैं, तथा प्रत्येक वृत्त दो आसन्न वृत्तों को स्पर्श करता हुआ बीच के ( केन्द्रीय ) वृत्त को भी स्पर्श करता है। इन वृत्तों के चारों ओर फिर से उतने ही नापके १२ वृत्त उसी प्रकार खींचे जा सकते हैं, और फिर से इन वृत्तों के चारों ओर केवल ऐसे ही १८ वृत्त खींचे जाना सम्भव हैं, इत्यादि । इस प्रकार, प्रथम घेरे में ६ वृत्त, दूसरे में १२, तीसरे में १८ होते हैं, इत्यादि । इसलिये पवें घेरे में ६ प वृत्त होंगे। अब प घेरों में वृत्तों की कुल संख्या ( केन्द्रीय वृत्त से गिनी जाकर) १+१४६+२४६+३४६+ ......+प४६=१+६ (१+२+३+......+प) = १+६ प (प+१) = १ + ३ प (प+ १ ) होगी । यदि ६ प का मान 'न' दिया गया हो, तो कुल वृत्तों की संख्या १ +३४ न ( + १ ) होगी, जो इस नोट के आरम्भ में दिये गये सूत्र रूप में प्रह्रासित की जा सकती है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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