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________________ -६. २९८ ] मिश्रकव्यवहारः वर्गसंकलितानयनसूत्रम्— सैष्टकृतिर्द्विना सैकेष्टो नेष्टदलगुणिता । कृतिधनचितिसंघातस्त्रिकभक्तो वर्गसंकलितम् ॥ २९६ ॥ अत्रोद्देशकः अष्टाष्टादशविंशतिषष्ट्येकाशीतिषटकृतीनां च । कृतिघनचिति संकलितं वर्गचितिं चाशु मे कथय ।। २९७ ।। इष्टाद्युत्तरपदवर्गसंकलितधनानयनसूत्रम् द्विगुणैकोन पदोत्तर कृतिहतिषष्ठांशमुखचयहतयुतिः । व्येकपदन्ना मुखकृतिसहिता पदताडितेष्टकृतिचितिका ।। २९८ ।। एक से आरम्भ होने वाली दी गई संख्या की प्राकृत संख्याओं के वर्गों का योग निकालने के लिये नियम - दी गई संख्या को एक द्वारा बढ़ाते हैं, और तब वर्गित करते हैं। यह वर्गित राशि २ से गुणित की जाती है, और तब एक द्वारा बढ़ाई गई दत्त राशि द्वारा हासित की जाती है। इस प्रकार प्राप्त शेष को दत्त संख्या की आधी राशी द्वारा गुणित करते हैं । यह परिणाम उस योग के तुल्य होता है जो दी गई संख्या के वर्ग, दी गई संख्या के धन और दी गई संख्या की प्राकृत संख्याओं को जोड़ने पर प्राप्त होता है । इस मिश्रित योग को ३ द्वारा भाजित करने पर ( दी गई संख्या की ) प्राकृत संख्याओं के वर्ग का योग प्राप्त होता है ।। २९६ ॥ [ १६७ उदाहरणार्थ प्रश्न प्राकृत संख्याओं वाली कुछ श्रेणियों में, प्राकृत संख्याओं की संख्या (क्रम से ) ८, १८, २०, ६०, ८१ और ३६ है । प्रत्येक दशा में वह योगफल बतलाओ, जो दी गई संख्या का वर्ग, उसका घन, और प्राकृत संख्याओं का योग जोड़ने पर प्राप्त होता है । दो गई संख्या वाली प्राकृत संख्याओं के वर्गों का योग भी बतलाओ ॥ २९७ ॥ समान्तर श्रेणी में कुछ पदों के वर्गों का योग निकालने के लिये नियम, जहाँ प्रथमपद, प्रचय और पदों की संख्या दी गई हो --- पदों की संख्या की दुगुनी राशि १ द्वारा हासित की जाती है, तब प्रचय के वर्ग द्वारा गुणित की जाती है, और तब ६ द्वारा भाजित की जाती है । प्राप्तफल में प्रथमपद और प्रचय के गुणनफल को जोड़ते हैं । परिणामी योग को एक द्वारा हासित पदों की संख्या से गुणित करते हैं । इस प्रकार प्राप्त गुणनफल में प्रथमपद की वर्गित राशि को जोड़ा जाता है। प्राप्त योग को पदों की संख्या से गुणित करने पर दी गई श्रेढि के पदों के वर्गों का योग प्राप्त होता है ।। २९८ ॥ I संख्याओं के वर्ग का योग है । +१) न ( २९६ ) बीजीय रूप से, { २ (न + १३ (न + १) ३ = शা२१ जो न तक की प्राकृत ( २९८ ) [ { (श्न – १) ब* + अब } (न - १)+* + अब } (न - १ ) + अ ] न = समान्तर श्रेणी के पदों के - बर ६ वर्गों का योग ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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