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________________ १५८] गणितसारसंग्रहः [ ६. २६४३ वणिजः षट् स्वधनाद्वित्रिभागमात्रं क्रमेण तज्ज्येष्ठाः । स्वस्वानुजाय दत्त्वा समवित्ताः किं च हस्तगतम् ॥ २६४३ ॥ परस्परहस्तगतधनसंख्यामात्रधनं दत्त्वा समधनानयनसूत्रम्वाञ्छाभक्तं रूपं पदयुतमादावुपर्युपर्येतत् । संस्थाप्य सैकवाञ्छागुणितं रूपोनमितरेषाम् ।।२६५३।। अत्रोद्देशकः वणिजस्त्रयः परस्परकरस्थधनमेकतोऽन्योन्यम् । दत्त्वा समवित्ताः स्युः किं स्याद्धस्तस्थितं द्रव्यम् ।। २६६३ ।। था. अपने से छोटों को क्रमशः ३ रकम ( उसकी जो उनके हाथों में अलग-अलग थी) क्रमानुसार दी। बाद में वे सब समान धन वाले हो गये । उन सबके पास अलग-अलग हाथ में कौन-कौन सी रकमें थीं। ॥ २६४३॥ हाथ की समान रकमों को निकालने के लिये नियम, जब कि कुछ ( संख्या के ) मनुष्य एक से दूसरे को आपस में ही उतना धन देते हैं, जितना कि क्रमशः उनके हाथ में तब रहता है प्रश्न में मन से चुनी हुई गुणज ( multiple ) राशि द्वारा एक को भाजित करते हैं । इसमें इस व्यापार में भाग लेनेवाले मनुष्यों की संगत संख्या जोड़ते हैं। इस प्रकार प्रथम मनुष्य के हाथ का प्रारम्भिक धन प्राप्त होता है। यह और उसके बाद के फल क्रम में लिखे जाते हैं, और उनमें से प्रत्येक को एक द्वारा बढ़ाई गई मन से चुनी हुई संख्या द्वारा गुणित किया जाता है, और फल को तब एक द्वारा हासित करते हैं । इस प्रकार, प्रत्येक के पास का ( आरम्भ में उनके हाथ का ) धन ( जितना था, उतना ) प्राप्त होता जाता है ।। २६५३ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ३ व्यापारियों में से प्रत्येक ने दूसरों को जितना उनके पास उस समय था उतना दिया। तब वे समान धनवान बन गये। उनमें से प्रत्येक के पास अलग-अलग आरम्भ में कितनी-कितनी रकम थी॥२६६॥चार व्यापारी थे। उनमें से प्रत्येक ने दूसरों से उतनी रकम प्राप्त की जितनी कि उसके ( २६५३ ) गाथा २६६३ में दिये गये प्रश्न को निम्नरीति से हल करने पर नियम स्पष्ट हो जावेगा __ १ को मन से चुने हुए गुणज ( multiple ) द्वारा भाजित करते हैं। इसमें मनुष्यों की संख्या ३ जोड़ने पर ४ प्राप्त होता है। यह प्रथम व्यक्ति के हाथ की रकम है। यह ४, मन से चुने हुए गुणज १ को १ द्वारा बढ़ाने से प्राप्त २ द्वारा गुणित होकर, ८ बन जाता है । जब इसमें से १ घटाया जाता है, तो हमें ७ प्राप्त होता है, जो दूसरे आदमी के हाथ की रकम है ॥२५॥ यह ७ ऊपर की तरह २ द्वारा गुणित होकर, और फिर एक द्वारा हासित होकर १३ होता है. जो तीसरे आदमी के हाथ की रकम है। यह हल निम्नलिखित समीकरण से सरलता पूर्वक प्राप्त हो सकता है४ (अ-ब-स)-२६२ ब-(अ-ब-स)-२ स }= ४ स-२ (अ-ब-स) {२ ब-(अ-ब-स)-२ स}
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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