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________________ -६. २७०३] मिश्रकव्यवहारः [१५९ वणिजश्चत्वारस्तेऽप्यन्योन्यधनार्धमात्रमन्यस्मात् । स्वीकृत्य परस्परतः समवित्ताः स्युः कियत्करस्थधनम् ॥ २६७३ ॥ ___ जयापजययो भानयनसूत्रम् - स्वस्वछेदांशयुती स्थाप्योर्ध्वाधर्यतः क्रमोत्क्रमशः । अन्योन्यच्छेदांशकगुणितौ वज्रापवर्तनक्रमशः ।। २६८३ ।। छेदांशक्रमवस्थिततदन्तराभ्यां क्रमेण संभक्तौ । स्वांशहरनान्यहरौ वाञ्छानौ व्यस्ततः करस्थामितिः ।। २६९३ ।। अत्रोद्देशकः दृष्ट्वा कुकुटयुद्धं प्रत्येकं तौ च कुक्कुटिकौ। उक्तौ रहस्यवाक्यैर्मन्त्रौषधशक्तिमन्महापुरुषेण ॥२७०३।। पास की आधी उस ( रकम देने के ) समय थी। तब वे सब समान धनवाले बन गये। आरम्भ में प्रत्येक के पास कितनी-कितनी रकम थी ? ॥२६७३॥ (किसी जुए में ) जीत और हार से ( बराबर ) लाभ निकालने के लिये नियम (प्रश्न में दी गई दो भिन्नीय गुणज ) राशियों के अंशों और हरों के दो योगों को एक दूसरे के नीचे नियमित क्रम में लिखा जाता है, और तब व्युत्क्रम में लिखा जाता है। (दो योगों के कुलकों ( sets) में से पहिले की) इन राशियों को वज्राप्रवर्तन क्रिया के अनुसार हर द्वारा गुणित करते हैं, और दूसरे कुलक की राशियों को उसी विधि से दूसरी संकलित (summed up) राशि की संगत भिन्नीय राशि के अंश द्वारा गुणित करते हैं। प्रथम कुलक सम्बन्धी प्राप्त फलों को हरों के रूप में लिख लिया जाता है, तथा दूसरे कुलक सम्बन्धी प्राप्त फलों को अंशों के रूप में लिख लिया जाता है। प्रत्येक कलक के हर और अंश का अंतर भी लिख लिया जाता है। तब इन अंतरों द्वारा ( प्रश्न में दिये गये प्रत्येक गुणज भिन्नों के ) अंश और हर के योग को दूसरे के हर से गुणित करने से प्राप्त फलों को क्रमशः भाजित किया जाता है । ये परिणामी राशियाँ, इष्ट लाभ के मान से गुणित होने पर, (दाँव पर लगाने वाले जुआड़ियों के ) हाथ की रकमों को व्युत्क्रम में उत्पन्न करती हैं ॥२६८२-२६९॥ उदाहरणार्थ प्रश्न मन्त्र और औषधि की शक्ति वाले किसी महापुरुष ने मुर्गों की लड़ाई होती हुई देखी, और मुर्गों के स्वामियों से अलग-अलग रहस्यमयी भाषा में मन्त्रणा की। उसने एक से कहा, "यदि तुम्हारा पक्षी जीतता है, तो तुम मुझे दाँव में लगाया हुआ धन दे देना । यदि तुम हार जाओगे, तो मैं तुम्हें दाँव में लगाये हुए धन का ३ दे दूंगा।" वह फिर दूसरे मुझे के स्वामी के पास गया, जहाँ उसने (२६८३-२६९३ ) बीजीय रूप से, . (स+द) ब (अ+ब) द _xप, जहाँ _xप, और खसिबद-(स+द) अ। (स+द) ब-(अ+ब) स " (अ+ब) द-(स+द) अ." क और ख जुआड़ियों के हाथ की रकमें हैं, और भस, उनमें से लिये गये मिन्नीय भाग हैं, और प लाभ है । इसे समीकार से भी प्राप्त किया जा सकता है, यथा ख-अक, जहाँ क और ख अज्ञात राशियाँ हैं । क
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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